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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ४६८ बेरान (4) वि०. वीरान; उजाड़ अकस्मात् किसी काममें बाधा डालता; बेराअ०कि. 'वेरवु' का कर्मणि (२) रूठकर बीचमें से खड़ा हो जाना; बिखर जाना; तितर-बितर होना बीचमें टाँग अड़ाना। -वलयो= देरी (वें) वि. बैर रखनेवाला; वैरी दूसरे पक्षमें जा मिलना. - (२)पुं० दुश्मन; बैरी वेशधारी वि० रूप भरनेवाला; स्वाँगी; धेरे (वें) अ० -के साथ; से (लग्न) वेशधारी (२) ढोंगी; धूर्त (३)पुं० ठग वेरो पुं० कर; महसूल; 'टैक्स बेशवाळ न० देखिये 'वेविशाळ' । वेल स्त्री० बेल; लता वेष, वेषधारी देखिये 'वेश' आदि बेलण न० बेलन; बेलना . [फूल-पत्ता वेसण न० बेसन (२) बेसनका घोल बेलबुट्ठी स्त्री०, (-टो) पुं० बेल-बूटा; वेसर(-री) स्त्री० बेसर (नाकका बेला स्त्री० देखिये 'वेळा'(२) सीमा; गहना) [(३)बिल ;छेद मर्यादा; वेला (३) समुद्रतट; वेला वेह पुं० बेध; छेद (२) नाका; छेद (४) वाणी . .. वेळ स्त्री० वेला; समय ; बेला (२) वेली स्त्री० बेल; लता ज्वार; भाटाका उलटा।[-वळवी = बेलो पुं० बड़ी बेल, लता (२) वंश; दशा सुधरना.] : बेल [ला.]। -चालयो, वषवो = वेळ (वेळ,) स्त्री० नसोंका तनाव या वंश बड़ना; बेल बढ़ना. [बाली ऐंठन; मरोड़ (२) फोड़े-फुसी या क्लोपुं० स्त्रियोंकर कानका एक गहना; किसी धावकी पीड़ासे शरीरके संधिअवलं वि० बेसलीक़ा; जिसमें शऊर स्थानमें होनेवाली गाँठ; गिलटी (३) न हो (२) जिसके पेटमें बात न.पचे मनकी तरंग; खब्त ; धुन । [-आववी (३) विह्नल; व्याकुल ..... = शरीरकी नसोंका तन जाना (२) बाई. (वा') पुं० समधी : .. धुन सवार होना। -घालवी= फोड़ेवेवाण (वा' ;ण')स्त्री० समधीकी स्त्री; फुसी या घावके दर्दके कारण गिलटी समधिन; समधन [तिलक होना.] वेविशाळ (वे') न० सगाई; मॅगनी; वेळा स्त्री० वेला; समय ; बेला (२) बेल पुं० भेस;पोशाक;पहनावा; वेश-भूषा विलंब; देर (३) [ला.] वेला; खास (२) बदला हुआ भेस; रूप; वेष; अवसर; प्रसंगविशेष (४) आफ़तका स्वाम। [-उतारवो, काढतोपोशाक समय; विपत्काल। [-बटवी = समय बदलना (२) विषवाका केश आदि गुजर जाना।-बळवी=भाग्य फिरना; सिंगार निकाल देना (३) वचनभंग दिन फिरना। -वेळानी छायडी = करना; वादाखिलाफ़ी करना; मुकर जीवनके उतार-चढ़ाव, अस्तोदय.] जाना। फरवो, काहनो, घरबो, लेवो वेळ स्त्री० बालू; रेत = भेस बनाना; वेश धारण करना; बंगण (०) न० बैंगन; भंटा रूप भरना;स्वांम बनाना । -कारबो, वेंगणी (०)स्त्री० बैंगनका पौषा,बैंगन काटीने कमा रहेवं, काडीने सर्व बैंग (३०) न० बैंगन; भंटा संगीत For Private and Personal Use Only
SR No.020360
Book TitleGujarati Hindi Kosh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGujarat Vidyapith
PublisherGujarat Vidyapith
Publication Year1992
Total Pages564
LanguageGujarati, Hindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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