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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ** हाताधर्मकथासूत्रे धणं सत्थवाहेणं एवं वृत्ता समाणा एयमहं पडिसुर्णेति । तणं धणे सत्थवाहे पंचहिंपुत्तेहिं सद्धिं अरणिं करेइ, करिता, सरगं च करेइ, करिता, सरपणं अराणं महेइ, महित्ता अरिंगपाडेइ, पाडित्ता, अरिंग संधुक्खेइ, संधुक्खित्ता दारुयाई परि क्खेवेइ, परिक्खेवित्ता, अग्गिपज्जालेइ, पज्जालित्ता, सुंसुमाए दारियाए मंसं च सोणियं च आहारोंति । ते णं आहारेण अविद्धत्था समाणा रायगिहं नयरं संपत्ता मित्तणाइ० अभिसमणागया तस्स य विउलस्स धणकणगरयण जाव आभागी जाया यावि होत्था । तणं से धणे सत्थवाहे सुसुमाए दारियाए बहूई लोइयाई जाव विगयसोए जाए यावि होत्था || सू०८ ॥ टीका- 'तणं से' इत्यादि । ततः खलु स धन्यः सार्थवाहः पञ्चभिः पुत्रैः सह आत्मषष्ठः चिलातं ' परिधाडेमाणे २ ' परिधावन् २ = चिलातं ग्रहीतुकामस्तस्पृष्ठतोऽनुधावन् 'तण्हाए छुहाए य ' तृष्णया क्षुधया च ' संते ' श्रान्तः, -मनसा खिन्नः, ' तंते ' तान्तः शरीरेण क्लांतः, 'परितंते' परितान्तः = मनसा शरीरेण च -: तरणं से धण्णे सत्थवाहे । इत्यादि । टीकार्थ - (तरणं) इसके बाद ( पंचहि पुतेहिं सद्धि अप्पछडे से धणे सत्थवाहे) पांचो पुत्रों के साथ छठा बना हुआ वह धन्यसार्थवाह ( चियं परिधाडेमाणे २) चिलातचोर को पकड़ ने की इच्छा से उस के पीछे २ बार बार दौडता हुआ, (तण्हाए छुहाए य संते तंते परितंते नो संचाइए चिलायं चोरसेणावई साहित्थि गिहित ) पिपासा और 'तएण से धणे सत्थवाहे' इत्यादि टीअर्थ – ( तएणं ) त्यारपछी ( पंचहि पुत्तेहिं सद्धिं अपछट्टे से धणे सत्थवाहे ) पांये पुत्रानी साथै छठ्ठो ते धन्य सार्थवाहु ( चिलायं परिघाडेमाणे २ ) ચિલાત ચારની પાછળ પાછળ તેને પક્ડી પાડવા માટે વારંવાર દોડતાં દોડતાં ( तन्हाए छुहाए य संते तंते परितते नो संचाएह चिलायं चोरसेणावई' साहत्थि गिव्हित्तए) तस्स भने लूमाथी श्रांत थ गयो, भिन्न जनी गयो, तांत थ For Private and Personal Use Only
SR No.020354
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 03
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanahaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages872
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size26 MB
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