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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ७०४ शाताधर्म कथामने भविस्सइ उदाहु णो भविस्सइ तिकटु त मऊरी अंडयं अभिक्खणं अभिवणं उठवत्तेइ परियत्तइ आसारेइ आसारेइ संसारइ चालेइ फदेइ घटेइ खोभेइ अभिक्खणं अभिक्खणं कन्नमूलंसि टिट्टियावेइ तएणं से मऊरी अंडए अभिक्खणं अभिक्खणं उव्वतिजमाणे जाव टिट्टिया वेजमाणे पोच्चडे जाए यावि होत्था, तएणं से सागरदत्तपुत्त सत्थ वाहदारए अन्नया कयाइं जेणेव से मऊरी अंडए तेणेव उवागच्छइ उवोच्छित्ता तं मऊरी अंडयं पोचडमेव पासइ पासित्ता अहोणं ममं एसकिलावणए मऊरीपोयए ण जाए तिकटु ओहयमण जाव झियायइ। एवामेव समणीउओ। जो अम्हं निग्गंथो वा निग्गंथी वा आयरियं उवज्झयाणं अंतिए पव्वइए समाणे पंच महब्बएसु छ जी विनि काएसु निग्गंथे पावयणे किते जाव कलुससमावन्ने से णं इहभवे चेव बहूणं समणाणं बहूर्ण समणीणं बहूणं सावगाणं बहूणे सावि गाणं होलणिजे निंदणिज्जे खिसणिज्जे गरहणिजे परिभवणिज्जे परलोएवि य णं आगच्छइ बहणं दंडणाणिय जाव अणुपरियट्टइ।सू. १४१ टीका--तत्थणं' इत्यादि-'तत्थणं' तत्र तयोईयोर्मध्ये 'जे से' योऽसौसागरदत्त पुत्रः सार्थवाहदारकः ‘से गं' सः खलु 'कल कल्ये-प्रातः समये 'तत्थ णं जे से सागरदतपुते' इत्यादि । टीकार्थ-- (तत्थ) इनमें (जे से सागरदत्तपुते सत्थवाहदारण) जो सार्थवाह दारक सागर दत्तपुत्र था (से णं कल्लं नाव जलंते जेणेव से वणमऊरी अंडए तेणेव उवागच्छइ) वह प्रातः समय यावत् सूर्य के प्रका- : 'तत्थणं जे से सागरदत्तपुत्ते' इत्यादि। ___ ---(तत्थ) ते मामा (जे से सागरदत्तपुत्ते सत्यवाहदारए) 2 सावा सा२६ तो पुत्र हतो ते. (से णं कल्लं जाब जल ते जेणेव से वणमऊरी अंडए नेशव उवागच्छइ) सवारे यारे सूर्य य पायो त्यारे न्यi नवनी For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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