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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्म कथासूत्रे सोमागारे' शशिसौम्याकार:-शशी चन्द्रस्तद्वत् सौम्य: रमणीयः, आकार:= स्वरूपं यस्य स तथोक्तः । 'कंते’ कान्तः कमनीयः । 'पियदंसणे' प्रियदर्शन:भियं-दर्शकजनमनोहलादकं दर्शनम् अवलोकनं यस्य स तथोक्तः । 'सुरुवे' सुरूपः-सर्वातिशायिरूपलावण्यवान् । 'सामदंडभेय उपप्पयाणणीइमुप्पउत्तण. यविहिण्णू' सामदण्डभेदोपप्रदाननीति सुप्रयुक्तनयविधिज्ञः-तत्र साम='वयं युष्मा. कं यूयमस्माकं को भेदोऽस्माकम्' इत्यादि मधुरवाक्यैः शत्रुपक्षवशीकरणम्, दण्डः दण्डयते-धनाद्यपहरणेन निस्सारी क्रियते जनो येन स तथोक्त:-क्लेशोत्पादेन परिपूर्ण था। चंद्रमाके जैसा इसका सौम्य आकार था। देखने वालों को यह बहुत अधिक प्रिय लगता था। कमनीय था। रूप लावण्य इसके प्रत्येक अंग से टपकसा रहा था। यहाँ "अहोणजावसुरूवे" में जो यावत् पद रखा है-उस से इस पाठ का यहाँ ग्रहण किया गया है-अहीणपडिपूण्ण-पंचेन्द्रियसगरे लक्खणवंजणगुणोववेए, माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्ण -सुजायसव्वंगसुदरंगे, ससिसोमागारे, कंते, पियर्दसणे सुरूवे । (सामदंड भेदउवप्पयाणणीतिसुप्पउनणयविहिन्नू ईहा-चूहमग्गण-गवेसणअत्थसत्थमइविसामए) हम आपके हैं आप हमारे हैं हम में और आप में कोई भेद नहीं है इत्यादिमधुर वचनों द्वाराशत्रुपक्ष को वश में करना यह साम उपाय है, क्लेश उत्पन्न करके अथवा कोष आदि का अपहरण करके शत्रु को वश में करना-या उसे विलकुलकमजोर बना देना यह दण्डनीति है, शत्रु पक्ष के स्वामी-तथा सेवक में जो परस्पर में स्नेह होता है उसमें भेद करना-उनके चित्त में ऐसी बात जमा देना कि जिससे दोनों आपसमें एक दूसरे का विश्वास न कर सकें इसका नाम भेदनीति है। यह भेदनीति ३ तीन प्रकार की कही गई हैચન્દ્રના જેવો એમને સૌમ્ય આકાર હતા. જેનારને એ બહુજ વધારે ગમતું હતું. એ કમનીય હતા. રૂપ અને લાવણ્ય એમના દરેકે દરેક અંગમાંથી નીતરતું હતું. मडी 'अहीण जाव सरूवे भरे यावत् प६ भुमी माव्युं छ, तेनाथी मा पाइनु मी अः ४२वामा पाव्ये -अहीणपडिपुणपंचेंदियसरीरे लक्खणवंजनगुणोववेए माणुम्माणप्पमाणपडिपुण्णसुजायसव्वंगसुंदरंगे ससिसोमागारे, कंते. पियदंसणे सुरुवे ।" सामदंड भेद उपप्पयाण गीतिसुप्पउत्तणयविहिनू ईहा वृहमग्गणगवेसणअत्थमत्थभइविसामए) અમે તમારા છીએ; તમે અમારા છે; આપણામાં કેઈ પણ જાતને ભેદ નથી, વગેરે મીઠા વચનોથી શત્રુપક્ષને વશ કરે આ સામ ઉપાય છે. પીડિત કરીને અથવા તે ધન-ભંડારનું હરણ કરીને દુશ્મન ઉપર કાબૂ મેળવે અગર તેને સાવ નિર્બળ બનાવે આ દણ્ડનીતિ છે. શત્રુપક્ષના સ્વામી તેમજ સેવકમાં જે એક બીજા તરફ है वह प्रमाण कहीगई है। For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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