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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ૬૮. ज्ञाताधर्मकथासूत्रे नवाङ्गानि द्वे श्रोत्रे, द्वे नयने, द्वे नामिके, जिह्यात्वा मनश्वेत्येतानि सुप्ता - नीव सुप्तानि तानि यौवनप्राप्त्या प्रतिबोधितानि स्वस्वविषयग्रहणपटुतां प्रापितानि यया सा तथा 'अट्ठारसदेसभा सविसारया' अष्टादशदेश भाषाविशारदा-- अष्टादशदेशभाषासु विशारदा-कुशला 'सिंगारागारचारुवेसा' श्रृंगारागार चारुवेषा- ङ्गारस्यागार मित्र चारु मनोहरो वेषो यस्याः सा तथा 'संगय-गय- हसिय भगिय- चेट्टिए विहिय विलास-संलाबुलावनिउणजुतोबयार कुसन्य सङ्गत-गत इसित - भाणितचेष्टितविविध :- विलास सल्लापोल्लापनिपुणयुक्तोपनारकुशला इति तु व्याख्यातपूर्वम् 'उसियझया' उच्छ्रितध्वजा - उच्छ्रिता ध्वजा यस्याः सा तथा 'सहस्स लंभा' सहस्रलम्भा शुल्केन सहस्रलम्भो लाभो यस्याः सा तथा विदिन्नछत्तचामरवापिगिया' वित्तीर्णछत्रचामर बालव्यजनिका वितीर्णानि=भूपेन दत्तानि छत्रचामराणि बाल व्यजनिकाचामरविशेषो यह्याः सा तथा कन्नीरहप्पयाया' कर्णीरथप्रयाता कर्णीरथः प्रवहणं नरवाह्ययानविशेषस्तेन पयाया प्रयातं गमनं दो श्रोत्र, दो नयन दो नासिका के छिद्र ६ जिल्हा ७ स्पर्श ८ तथा मन ९ इन सुत नवांगों की यह प्रतिबोधक थी । (अट्ठारसदेसभासा विसारया) अष्टा दश देशों की भाषामें यह विशारदा-निपुण थी । (सिंगारागारचारुवेसा संगयगय हसिय० ऊसियझा) श्रृंगार के आगार के समान इसका सुन्दर वेष था । सगत यावत् निपुण युक्तोवचार में यह कुशल थी । संगत, गत, हसित, भणित इत्यादि निपुणयुक्तोपचार पर्यन्त पदों की व्याख्या पहिले की जा चुकी है। इसकी ध्वजा फहराती थी। (सहम्मलंभा) एक हजार रुपया इम की फीम थी (चिदिन्नछत्तवामरबालवियणिया) राजाने इसके लिये छत्र, चामर, और बालव्यजनयें वितीर्ण किये थे । (कन्नीरहप्पयाया गाविहोत्था) ते निपुणु हती. (णवंग सुत्तपडिबोडिया) में अन, मे आओ, मे नाउना अशां शुभ, स्पर्श मने भन या नव सुप्त संगोनी ते प्रतिमोधर हुती. (अट्ठारसदेसनासाविसारया) अढार देशोनी भाषाभां ते पंडित हती. (सिंगारागारचारुवेसा संगयगयहसिय ऊसिएझया) श्रृंगारना निवासस्थाननी प्रेम तेनो वेष सुंदर હતા. સંગત અને બીજા ચુકતાપચારમાં તે નિપુણુ તેમજ કુશળ હતી. સંગત, ગ, હસિત, ભણિત, વગેરે નિપુણ યુકતાપચાર સુધીના પદોની વ્યાખ્યા પહેલાં કરવામાં भावी छे. ते गुणिअनी धन्न सडेराती हुती. (सहस्सल भा) मेडुन्नर ३पिया तेनी झी हती. (त्रिदिन्नछत्तचामरबालवियणिया ) रामये तेना भाटे छत्र, याभर अने macurlanıòu (d'vell) «Ula ed. (z-fcgqqa1a1aifa àtan) wavl Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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