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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ६३० धर्मकथा संत्र महता |चारकशाला=कारागारगृहं तत्रापागच्छान्त, उपागत्य तस्य 'हडिबंध' हाडबन्धनं=काष्ठविशेषबन्धनं 'बेडी' इति भाषा प्रसिद्धे हडियन्त्रे बन्धन कुर्वन्ति कृत्वा 'भत्तपाणनिरोह' भक्तपाननिरोधम्= अशनवानप्रतिषेध कुर्वन्ति कृस्वा 'तिसंझ'' त्रिसन्ध्यं =प्रातर्मध्याह्नसायंस्वरूपे कालत्रये कशामहारांच यावद् निपातयन्तो निपातयन्तो विहरन्ति । 'तएणं' ततः खलु = इतः स धन्यः सार्थवाही मित्रज्ञातिनिजकस्वजनसम्बन्धिपरिजनेन सार्द्धं रुदन यावद् विलपन देवदत्तस्य दारकस्य शरीरस्य 'महया हड्डी सकारसमुदए' ऋद्धिसत्कार समुदयेन महता=विस्तीर्णेन ऋद्ध्या = त्रादि सामग्दा सत्कारः = मृतशरीरसम्मानं तेन, समुदयेन= जनसङ्केन च 'नीहरणं' निर्हरणं= शवस्य श्मशानभूमिनयनं करोति कृत्वा मृत शरीरदहनक्रियानन्तरं बहुनि कारागार ( कैदखाना) जहां था। वहां गये उवागच्छित्ता हडिबंधणं करें ति) वहां जाकर वे उसे हडियत्र में बांध देते हैं । (करिता भत्तपाण निरोहं करेति करिता तिचं कसप्पहारेय जान निवाएमाणा २ विहरंति) बाद में उसे खाना पीना देना बंध कर देते हैं । और तीनों संध्या के समय ( सुबह दो पहर तथा सांयकाल ) उसे कोडे आदि के प्रहारों से जर्जरित शरीर कर देते हैं । (तरण से धन्ने सत्यवाहे मिननाइ नियगसपण संवधि परियणेणं सद्धिं रोयमाणे जाव विलवमाणे देवदि नम्म दारगस्स सरीरस्म महया इसिक्कारसमुदपणं नीहरणं करेड) इसके बाद उस धन्य सार्थवाहने मित्र ज्ञाति, निजक स्वजन, सम्बन्धी और परिजनों से युक्त होकर रोते हुए यावत् विलाप करते हुए अपने देवदत्त दारक के शरीरकी बडे भारी उत्सव के साथ अर्थी निकाली । चारगामाला तेणामेव उवागच्छति) तेथेो भेस तरइ गया. ( उवाग छिन्ता हड़ियंत्रण करेंति) त्यां ने तेयोमे थोरने इंडियंत्र (साउडानी मेडी) भा बंधन यो 'करिता भत्तपाणनिरोह करेति करिता तिसंझ कसष्पहारे य जात्र नित्राएमाणा २ विहरति ' त्यार બાદ તેઓ ચોરને ખાવા પીવાની બધી વસ્તુએ આપવાની અદ કરે છે અને સવાર, બપોર અને સાંજ ત્રણે સંધ્યાના સમયે કારડા વગેરેના પ્રહારેાથી તેના શરીરને શિથિલ અને જર્જરિત डेरी नाचे छे. (त एणं से धन्ने सत्थवाहे मिणेनाइनियगसयण संबंधिपरियसद्धि रोयमाणे जाव विलवमाणे देवदिन्नस दारगस्स सरीरस्स महया सारसमुदणं नीहरणं करेइ) त्यार पछी धन्य सार्थवाहे भित्र, ज्ञाति, નિજક, સ્વજન, સંબંધી અને પરજનાની સાથે મળીને રડતાં રડતા અને કરુણુ ક્રંદન કરતાં બાળક દેવદત્તના શરીરની બહુ મોટા ઉત્સવ રૂપે શ્મશાનયાત્રા કાઢી. શ્મશા Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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