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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अगाधमृतवर्षिणीटीका अ. २ स. ८ देवद 5 अन्धकासचेटकस्य एतमथ श्रुत्वा निशम्य तेन च महता पुत्रशाकेन (अभिभूए' अभिभूतः = आक्रान्तः सन 'परसुणिय क्षेत्र' परशुनिकृत्त इव परशुना=कुठारेण निकृतः = छिन्नः 'चंपगपायवेव' चम्पकपादप इव= चम्पक वृक्ष इ 'धमत्ति धरणीयलमि' 'स' इति शब्देन भूमितले 'सव्वगेहिं ' सर्वाङ्गः संनिवइए' संनिपतितः । ततः खलु स धन्यः साहः 'ततो मुहूर्ततरस्स' ततो मुहूर्तान्नरम्य = मुहूर्तस्य पश्चात् मुहूर्तानन्तरमित्यर्थः 'आसत्थे' आम्वस्थः आश्वस्तो वा=प्राप्तचेष्टः 'पच्छागयपाणे' पश्चादाग प्राण: = पूर्व मृतप्राण इव भूत्वा पुनर्जागरितप्राणः सन् देवदत्तस्य दारकस्य 'सओ समता' सर्वतः समन्तात् सर्वासु दिशासु मार्गगगवेषणं करोति, ६२१ आदि में डाल दिया है । इस प्रकार कह कर वह धन्य सार्थवाह के पैरोंपर गिर पडा । (तरणं से धन्ने सत्यवाहे पंथयदासचेडयस्स एयम मोच्चा णिसम्म तेrय महया पुरोसोएणाभिभूए समाणे परसुणियत्ते चंपगपायवे For Private and Personal Use Only सन्ति धरणीतलंसि सव्वंहिं सन्निवइए) इस प्रकार वह धन्य सार्थवाह पथक दासचेटक से इस अर्थ- समाचार को सुनकर और उसे हृदय में अबघृतकर उस महान् पुत्र शोक से युक्त होता हुआ परशु कुठार से काटे गये चंपक वृक्षके समान समस्त अंगों से इकदम जमीन पर गिर पडा । (तरणं से धन्ने सत्यवाहे तओ मुहुत्तंतरस्स आसत्थे पच्छागयपाणे देवदन्नस्स दारगम्स सव्वओ समंता मग्गणगवेसणं करेइ) बाद में वह धन्य सार्थवाह १ मुहूर्त के बाद आश्वस्त हुआ ऐसा उस समय मालूम हुआ कि मानों इसमें प्राण लौटकर पुनः आ गये हैं: अपने पुत्र देवदत्त की सब तरफ चारों दिशाओं में मार्गणा गवेषणा તેનું અપહરણ કર્યુ છે. અથવા ખાળને કાઇ દુષ્ટ ખાડા વગેરેમાં ફ્રેંકી દીધા છે. उमा रीते उद्धेतां ते धन्यसार्थवाहना पगे घडयो. (तए णं से घण्णे सत्थबाहे पंथप्रदासचेsयस्त एयम सोच्चा णिसम्म तेणय महया पुत्तसोयेणाभि भूये समाणे परसुणिय क्षेत्र चपगपायवे धसत्ति धरणीतलंसि संगेहि सन्निवइए) मा प्रभाएो धन्य सार्थवाहे चांथम्हास थेटना भोढेथी अधी विगत સાંભળીને તેને ખરાખર હૃદયમાં ધારણકરીને મહાન પુત્રશેાકથી પીડાતા કુહાडीथी अपेक्षा यंचाना वृक्षनी प्रेम ते पृथ्वी उपर पडी गयो, (त एणं से धणे सत्थवाहे तओ मुहुततरस्स आमस्थे पच्छागयपाणे देवदिन्नस्स दार गस्स सवओ समता मग्गणगवेसणं करेइ) त्यार माह मे भुहूर्त પછી ધન્ય સાવાહ ભાનમાં આવ્યા. તે વખતે જાણે ફરી તેએમાં પ્રાણુનું સંચરણુ થયુ હાય તેમ લાગ્યું. ઊભા થઈને તે પોતાના પુત્ર દેવદત્તની ચામેર તપાસ
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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