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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - ज्ञाताधर्म कथासूत्र आयुष्कर्मपुद्गलानजेरणेन, 'भवक्खएणं' भवक्षयेण देवभवसम्बन्धिकर्मणां गत्यादीनां निर्जरणेन ठिइक्खएणं' स्थितिक्षयेण=देवभवसम्बन्धि शरीरावस्थान. क्षयेण, अनन्तरं चयं देवभवसम्बन्धिशरीरं त्यक्त्वा कुत्र गमिष्यति ? कुत्रोत्पत्स्यते ? हे गौतम ! महाविदेहे वर्षे-महाविदेहक्षेत्रे सिज्झिहिइ' सेत्स्यति सकलकार्यकारितया सिद्धो भविष्यति, बुज्झिहिह' भोत्स्यते-विमलकेवला. लोकेन सकललोकालोकं ज्ञायत, 'मुचि हइ' मोक्ष्यति सर्वकर्मभ्यो मुक्तो भविष्यति, 'परिनिवाहिह' परिनिर्वास्थति समस्तकर्मकृतविकारहितत्वेन स्वस्थो भविष्यति, 'सव्वदुःखाणमंतं करेहिइ' सर्वदुःखानामन्तं करिष्यति समस्तक्लेशानां नाशं विधास्यति, अव्याबाधमुखभोगी भविष्यतीत्यर्थः। अध्य देवे ताओ देवलोयानो आउखएणं भवक्खएणं ठिईवश्व एणं अणंतरं चयं चइत्ता कहिं गच्छहिइ कहिं उवजिहिइ ? ) इस प्रकार प्रभु के मुखारविन्द से मेघकुमार की उत्पत्ति का स्थान सुन कर गौतमने पुनः उनसे यह पूछा कि हे भदंत ! अब ये मेघकुमार देव उस देवलोकसे आयु के क्षय से, भव के क्षय से, स्थिति के क्षय से देवभर संबन्धी शरीर का त्याग कर कहां जावेगें। कहां उत्पन्न होंगे! (गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ, बुज्झिहिइ, मुच्चिहिइ, परिनिवाहिइ सयदुवखाण मंतं करेहिइ) इस प्रकार गौतम द्वारा पुनः पूछने पर प्रभुने उनसे कहागौतम ये मेघकुमार देव महाविदेह में उत्पन्न हो कर वहीं से सिद्ध होंगे विमल केवल ज्ञानरूप आलोक से समस्तलोक और आलोक का ज्ञाता होंगे। समस्त ज्ञानावरणादिक अष्ट कमों से रहित होंगे, कर्मकृत समस्त विकारों से सा॥२ रेसी स्थिति वाम मावी छ. (एसणं भते मेहे देवे ताओ देवलो. याओ आउक्खएणं भवक्खएणं ठिइकक्खएणं अणंतरं चयं चहत्ता कहिं. गच्छिहिइ कहिं उववन्जिडिइ) ?) मा प्रमाणे भेषभारनी उत्पत्ति विर्षना स्थाનની વાત સાંભળીને ગૌતમે ફરી પ્રશ્ન કર્યો–કહે-ભદંત! મેઘકુમારદેવને દેવલેથી આયુષ્ય ક્ષયથી, ભવાયથી, સ્થિતિક્ષયથી દેવભવના શરીરને ત્યાગ કરીને ક્યાં જશે? કયાં तत्पन्न थशे ? (गोयमा ! महाविदेहे वासे सिज्झिहिइ धुझिडिइ, मुञ्चिहिइ. परिनिवाहिइ, सव्वदुक्खाणम ते करेहिइ) 0 प्रमाणे गौतमना प्रश्नने સાંભળીને પ્રભુએ તેમને કહ્યું કે-હે ગૌતમ! આ મેઘકુમાર દેવ મહાવિદેહમાં ઉત્પન્ન થઈને ત્યાંથી સિદ્ધ થશે. વિમળ અને કેવળજ્ઞાનરૂપ આલેથી સમસ્તલેક અને આ લેકના જાણનારા થશે. તેઓ સમસ્ત જ્ઞાનાવરણ વગેરે આઠ કર્મો રહિત થશે અને બધા વિકારે રહિત થઈને સ્વસ્થતા પામશે. તેઓ બધાં દુખોને નાશ કરશે For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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