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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवाणी टोका अ. १ स. ४७ मेघमुनेः तपः शरीरवर्णनम् ५३५ मित्तगिलाय इ' भाषां भाषिष्ये इति ग्लायति-मया भाषितव्यमितिकृत्वा कष्टमनुभवति, अपौ सर्वामपि क्रियामात्मबलेनैव करोति, न तु शरीरवले. नेति भावः। 'से जहानामए' अथ गथा नामक-अप दृष्टान्तः प्रदर्यते इत्यर्थः। 'इंगालमगडि पाइ वा' अङ्गारशकटिका, अङ्गाराः 'को पला' इति भाषायां तैः संभृताः शकटिका गन्त्री ‘गाडी' इति भापायां, 'कट्टसगडिया इवा' काष्ठशकटिका-शुष्ककाष्ठसंभृतशकटिका 'पत्तसगडिया' शुष्कपत्र संभृतशक टिका तिलसगडिया' शुष्कतिलफलीसंभृतशकटिका 'एरंडकट्ठसगडिया' शुष्करण्डकाष्ठसंभृतशकटिका 'उण्हे दिन्ना' उणे दत्ता प्रकृष्टात पे स्थापिता 'मुक्का स. माणी' शुष्कासती समदं गच्छइ' सशब्दं गच्छति शब्दं कुर्वाणा प्रचलति 'ससई चिः' मशब्दं तिष्ठति-स्थिति समयेऽपि शब्दं कृत्वा तिष्ठतीत्यर्थः। 'एवामेव' अमुनै प्रकारेण मेघोऽनगारः महामुनिः सशब्दं गच्छति सशब्द इसका यह है कि ये जितनी भी क्रियाएँ करते थे वे सब आत्माके बल से करते थे शरीर-पल से नहीं । (से जहानामए इंगालपगडिया वा अपगडिया वा पत्तसगडिया या रिल सगडिया वा एरंडकदसगडिया वा उण्इ दिन्ना सुक्का समाणी समई गच्छइ ससई चिइ) जिस प्रकार कोयलो से भरीहुई गाडी शुष्ककाष्ठ से भरी हुई गाडी, शुष्कपत्रों से भरी हुई गाडी, सुखी तिल की फलियों से भरी हुई गाडी गम्बी एरण्ड की लकडियों से भरी हुई गाडी कृिष्ट आतप में रखीं रहने के कारण भन्वी होने से चलते समय ' चे इत्यादि शब्द करती हुई चलती हे ठहरते समय भी सशब्द हो कर ठहरती है (एवामेत्र मे हे अणगारे ससई गच्छइ ससदं चिट्ठइ, उचिए तवेग अचिए मांससोगिएणं) इसी तरह महामुनि मेघकुमार अनगार भी जब चलते थे तब उस समय उनकी हड्डी से चट चट મુનિરાજ જેટલી ક્રિયાઓ કરતા હતા તે બધી આત્માના બળે જ કરતાં હતા શરીરના पणे नहि. (से जहानामए इंगालसगडिया वा कट्ठसगड़िया वा पत्तसग डिया वा तिल सगडिया वा एरंडकट्ठसगडिया उण्हे दिन्ना मुक्कासमणी ससई गच्छा समद चिठ्ठइ) म ससाथी मरेदी 11, सूडामेसi assist ભરેલી ગાડી, સૂકાં પાંદડાંથી ભરેલી ગાડી. તલની ચૂકી ફળીઓથી ભરેલી ગાડી. એરંડાનાં સૂકાં લાકડાંથી ભરેલી ગાડી પ્રચંડ ધૂળમાં મૂકી રાખવાથી સૂકી હોવા બદલ ચાલતી વખતે “શું” શું વગેરે શબ્દો કરતી ચાલે છે અને ભતી વખતે પણ અવાજ ४६ती थाले छ. एवामेव मेहे अणगारे ससई गच्छइ ससई चिट्टइ, उवचिए मांससोणिएणं) । प्रभारी महामुनि भेषभा२ ५ न्यारे यासता हता ત્યારે તેમના હાડકાંથી “ચટ” “ચટ’ શબ્દ થવા માંડતે. બેસતી વખતે પણ તેમના For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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