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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ५०१ %3 अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका असू.१५५ मेघनि प्रनिभगवाददेशः त्रीणि रात्रि दिवानि 'वेयणं' वेदनां 'वेएमाणे' वेदयन अनुभवन् विहत्य 'एयं वाससयं' एक वर्षशतं परमायुः पालयित्वा इहैव जम्बूद्वीपे द्वीपे भारते वर्षे राजगृहे नगरे श्रेणिकस्य राज्ञो धारिण्या देव्याःकुक्षौ कुमारतया 'पचायाए' प्रत्यायात: हस्ति मवात् समागतः ।।सू० ४४॥ .. मूलम्-तएणं तुमं मेहा! आणुपुव्वेणं गब्भवासाओ नि खते समाणे उम्मुक्कबालभावे जोव्वणगमणुपत्ते मम अंतिए मुंडे भवित्ता अगाराओ अणगारियं पब्बइए, जइ जाव तुम मेहा! तिरिक्खजोणियभावमुवगएणं अपडिलद्धसंमत्तरयणपडिलंभेणं से पाये पाणाणुकंपयाए जाव अंतरा चेव संधारिए नो चेव णं निक्खित्ते किमंग पुण तुमं मेहा! इयाणि विपुलकुलसमुब्भवे निरुवह यसरी समस्त शरीर को जला रही थी, सकल शरीर में तिल में तैल की तरह व्याप्त हो रही थी। तीव्र थी--दुःसह थी। आदि २ । इस कारण तुम दाहज्वर से भी युक्त हो गये। (तएणं तुम मेहा । तं उज्जलं जाव दुर हियासं तिनि राइंदियाई वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउं पा लइत्ता इहेब जंबुद्दीवे दीवे भारहेवासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रणो धारिणीए देवीए कुच्छिंसि कुमारत्ताए पच्चायाए) इसके बाद हे मेघ ! तुम उस उत्जवल यावत् दरध्यास वेदना को तीन दिन रात तक अनुभव करते हुए एक सौ वर्ष की उत्कृष्ट आयु समाप्त कर इसी जंबू. द्वीप नाम के द्वीप में भारत वर्ष में राजगृहनगर में श्रेणिक राजा और धारिणी देवीकी कुक्षि में हस्ति की पर्याय से पुत्र रूप से जन्मे ॥ सूत्र “४४" जाव दाहवकतिए यावि विहरसि ) वेदना तla डोवाथी तमा सनी આખા શરીરમાં બળતરા થવા માંડી હતી. તમે દાહજવરથી પીડાઈ રહ્યા હતા. (तएणं तुम मेहा! तं उज्जलं जाव दुरहियासं तिन्नि राईदियाई वेयणं वेएमाणे विहरित्ता एगं वाससयं परमाउं पालइत्ता इहेव जबुद्दीवे दीवे भारहेवासे रायगिहे नयरे सेणियस्स रण्णो धारिणीए देवीए कुच्छिसि कुमारत्ताए पञ्चायाए) त्या२ पछी उ भे! ते स भने ६२प्यास वेदना ત્રણ દિવસ અને રાત અનુભવીને એક વર્ષનું ઉત્કૃષ્ટ આયુષ્ય પૂરું કરીને એજ જંબુદ્વીપના ભારતવર્ષમાં રાજગૃહનગરમાં શ્રેણિક રાજા અને ધારિણી દેવીના ઉદરમાં स्तिना पर्यायथी पुत्र३ सन्म पाभ्या. ॥ सूत्र “४४"॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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