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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका म. ४० मेघमुनेहम्तिभववर्णनम् । नियोजकः 'जूहबई' यथपति हस्तिसमूहनायकः 'विंदपरिवड्डए' वृन्दपरिवर्धमा निजपरिवारवृद्धिकारकः त्वं हे मेघ ! अन्येषामपि बहूनाम् ‘एकल्लाणं' एकामिनाम् 'एकविहारिणां 'हस्थि कलभाणं' हस्तिकलमानां हस्तिशापकानां च 'आहेबच्च' आधिपत्यं स्वामित्वं यावत् कुर्वन् पोलयन् विहरसिस्म । ततःखलु हे मेघ ! त्वं 'निच्चप्पमने' नित्यप्रमत्तः विषयादिषु नित्यप्रमादीसन् 'सइंपललिए' सदा प्रललितः प्रक्रीडितः क्रीडारसिकः 'कंदप्परई' कंदर्परतिः कामक्रीडापरायणः मोह णसीले' मोहनशील विषयासक्तः 'अवितिण्हे' अवितृष्णाः कामभोगेषु अविरक्तः 'कामभोगतिसिए' काममोगवषितः, कामभोगा:=पंचेन्द्रिय विषयास्तत्र प्रसक्तः घवीभिर्हस्तिनीभिर्यावत्संपरितः वैतादयगिरिपोदम्ले वैताढ्यकिया करते थे। कारण (यूथपति ) तुम हस्ति समूह के नायक · कहे जाते थे। (विंदपरिवए) वहां तुम अपने परिवार की वृद्धि करने में लगे रहते थे। (अन्नेसिं च बहणं एकल्लाणं हथिकलभाणं आहेवच्चं नाव विहरसि) समय २ पर अन्य और भी अनेक एकलविहारी हम्ति. शावकों का तुम आधिपत्य आदि करते रहते थे। (एसणं तुम मेहा : णिचप्पमत्त) इस के बाद हे मेघ ! तुम विषयादिकों में नित्य मदोन्मत्त होते हुए (सइपललिए) क्रीडा करने में बडे रसिक बन गये (कंदप्परई) और काम क्रीडा में परायण होकर (मोहणसीले ) विषयों में तुम्हारी अधिक आसक्ति हो गई थी (अवतण्हे ) यहांतक वह आसक्ति बढी कि कामभोग तृष्णा तुम्हारी कभी शांत ही नहीं होती रही (काम भोगतिसिए) अतः तुम कामभोगों में तृषित होकर (बहुर्हि हत्थीहि (पषुवए) धभीमा तेमने नियुत ४२ता छता, भ3 (गृथपति ) तभने हाथीमाना टोना नाय हेवामा सावता ता. (विंदपरिवड्डए) त्यां तमे पोताना परिवारनी वृद्धि ४२वामा पशवाय॥ २हेता ता. ( अन्नेसिंच बहू णं एकल्लाणं हत्थिकलभाणं आहेवच्चं जाब विहरसि) quो मत मlon प ध मे४८ विय२७ ४२ना। थाना अभ्यास ५२ ॥सन वगेरे ४२ता २३ता उता. (तपणं तुम मेहा णिचप्पमत्ते) त्या२ मा भेध! तमे विषय वगेरे अभागोमा उमेश महमत्त यधने (सहयललिए) श्री. ४२वाभा भूम०४ २सिर २ गया. (कंदप्परई ) २ति म श ने (मोहण सिले) विषयोभा तमारे क्यारे ५ती सासहित (भाई) थ ५डी. (अवतण्हे ) या विषयोमा मासहित भारी આટલી હદે પહોંચી કે જેથી તમારી કામતૃષ્ણા કેઈ દિવસ શાંત નહિ થઈ. ( જ્ઞાન भोगतिसिए) मेटसा भाटे तमे विषय मागानी तान छ। रावत दुषित तस्या धन (बहहिं हत्थीहिय जाव संपरिवुडे वेयडगिरिपायमूले) For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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