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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३७ शाताधर्मकामो - इव, बोध्यम्, राजगृहस्य नगरस्य 'अन्नेसि च बहूण' अन्यषां च बहूना, गामा गरनगर जान मान्नवेसाणं' ग्रामाकर-नगर-खट-कर्षट-द्रोण मुख-मडम्बपत्तन-संबाधसन्निवेशानाम् इति यावच्छब्देन बोध्यते, तत्र-ग्राम: सामान्यजन वसतिः, आकर: स्वर्णादिखनिः, नगरं करवजितं, खेटं-धूलीप्राकारयुक्तं, कबंट-कुत्सितनगरं, द्रोणमुखं-जलस्थलमार्ग युक्तनगजलस्थलमागाभ्यां वस्तु ममानीयते यत्र, तद् द्रोणमुखमित्यर्थः, मडम्बः-ग्रामविशेषः यस्य चक्षु योजनेकपयन्तं ग्रामो नास्ति स मडम्बः, पत्तनं% समस्तवस्तुमाप्तिस्थानम्, सि चं बहू णं गामागरनगर जाव सन्निवेसाणं आहेबच्चं जाव निहसाहित्ति कट जय जय सदं पति) मनुष्यों के बीच में भरत राजा की तरह देवां में इन्द्र को तरह तारों में चन्द्र की तरह असुरों में चमर की तरह, नागों में धरणेन्द्र की तरह, तुम राजगृह नगर का तथा अन्य बहुत से ग्राम आकर, नगर, खेट, कर्बट, द्रोण, मुख, मडम्ब, पत्तन, संवाघ का आधिपत्य. पुरोवर्तित्व, स्वामित्व, भर्तृत्व, महनरकत्व और आज्ञेश्वर सेनापतित्व अन्य नियुक्त पुरुषों द्वारा करवाते हुए तथा प्रजाजनों की स्वयं रक्षा करते हुए जयवंता वर्ता. इस प्रकार उन गणनाय कादिकोने उसे जयविजय शब्दों द्वारा वधाइ दी। मामान्य जनोंका निवास स्थान जिसमे होता है वह ग्राम, स्वर्ण आदि की खानों का नाम आकर, अठारह प्रकार के टेक्स से जो रहित होता है वह नगर जिस में धूली का कोट होता है वह खेट, उबड़ खाबड जमीन वाला जो कुत्सित गांव होता है वह कर्बट, जिसकी चारों दिशाओं में नगरस्स अण्णेमिं च बहूणं गामागरनगर जाव सन्निवेसा गं आहेवच्चं जाब विहराहित्ति क जय जय सदं पउंति) भासोमा लत नीम, દેવતાઓમાં ઈન્દ્રની જેમ, તારાઓમાં ચન્દ્રની જેમ, અસુરોમાં ચમરની જેમ, નાગોમાં ધરણેન્દ્રની જેમ તમે રાજગૃહ નગર તેમ જ બીજા ઘણા ગ્રામ, આકર, નગર, ખેર, ४८, द्रोणुभुप, भ७५, पत्तन, साधन। २ाधिपत्य, पुशपतित्व, स्वामित्व, ભર્તૃત્વ, મહત્તરકત્વ અને આક્ષેધર સેનાપતિત્વ બીજા માણસો દ્રા કરાવતાં તેમજ પ્રજાજનેની જાતે રક્ષા કરતાં વિજયી થાઓ, આ રીતે તે ગણનાયક વગેરે માણસેએ જ ઘકુમારને જય વિજય શબ્દો દ્વારા વધાવ્યા. સાધારણ માણસોના નિવાસ રથાનને ગ્રામ સુવર્ણ વગેરેની ખાણોનું નામ આકર, અઢાર જાતના કર (ટેકસ) થી રહિત જે હોય છે તે નગર, જેને ચારે બાજુ માટીને કેટ હોય છે તે બેટ, ખરબચડી ઉંચી નીચી જમીનવાળું જે કુત્સિત ગામ હોય છે, તે કર્બટ, ચારે તરફ એક એક જન સુધી જેની પાસે બીજું કઈ ગામ ન હોય તે મડંબ કહેવાય For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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