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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीकाःअ.१५. ३१ मातापितृभ्यां मेघकुमारस्य संवादः ३६९ नग्रन्थप्रवचने कि दुष्करं 'करणयाए' करणतायां-करणे चारित्रधर्माराधने, धीरत्वादिगुणयुक्तस्य न किमपि दुष्करमित्यर्थः, 'तं' तत्=तस्माद् इच्छामि खलु हे मातापितरौ ! युष्माभिरभ्यनुज्ञातः सन् श्रमणस्य भगवतो महावीरस्य यावत् प्रव्रजितुम् ।।मू० ३०॥ मूलम्-तएणं तं मेहं कुमारं अम्मापियरोजाहे नो संचाऐंति बहहिं विसयाणुलोमाहि य विसयपडिकूलाहि य आघवणाहि य पन्नवणाहि य सन्नवणाहि य विनवणाहिय आघवित्तए वा पन्नवित्तए वा सन्नवित्तए वा विन्नवित्तए वा, ताहे अकामए चेव मेहं कुमारं एवं वयासी-इच्छामोत.व जाया एगदिवसमवि ते रायसिरिं पासित्तए । तएणं से मेहे कुमारे अम्मापियरमणवत्तमाणे तुसिणीए संचिइ । है ऐसे मनुष्य को इसकी आराधना में क्या कठिनता आ सकता हैं। कुछ नहीं। (तं इच्छामि णं अम्मयाओ तुम्भेहिं अब्भुणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स जाव पब्वदत्तए) इसलिये हे माता पिता ! मैं आपसे श्रमण भगवान महावीर के पास संयम लेने के लिये आज्ञा चाहता हूँ। आप मुझे आज्ञा दीजिये। बाह्य और आभ्यन्तर रूप परिग्रह से जो सर्वथा रहित होते हैं वे निग्रंथ कहलाते हैंउन निग्रंथों द्वारा जिसका उपदेश किया जाता है-अथवा उनका जो अभिमत होता है वह ग्रन्थ कहलाता है ।-टीका में जो " यदि गमा" " यदि च रमा" इत्यादि-इलोकद्वय लिखे हुए हैं उनको अर्थ स्पष्ट है ।-॥मत्र ३०॥ वगेरे गुणोथी युश्त छ; सेवा भाणुसने भाभा शुभुश्दी नही छ. ( तं इच्छामि णं अम्मयाओ तुम्भेहि अन्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवो महावीरस्स जाव पचहत्तए) मेटा भाटे भातापिता! तमाश पासेयी श्रम साવાન મહાવીર પાસે સંયમ લેવાની આજ્ઞા ચાહું છું. તમે મને આજ્ઞા આપે. બાહ્ય અને અભ્યન્તર રૂપ પરિગ્રહથી જે સંપૂર્ણ રીતે રહિત હોય છે, તે નિગ્રંથ કહેવાય છે. તે નિર્ચ દ્વારા જેને ઉપદેશ કરવામાં આવે છે અથવા તે તેમને જે ઈષ્ટ खाय छ, ते नैन्य उपाय छ. म २ " यदि रामा" "यदि च रमा" વગેરે બે કે લખેલા છે, તેમને અર્થ સ્પષ્ટ જ છે. સૂત્ર ૩૦ છે For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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