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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शाताधर्म कथाङ्गमत्र वान्तावा:-बान्तं वमनं तदासवन्तीति वान्तावाचमनोदगारिणः, पित्तासवा' पित्तास्रवाः-पित्तमास्रवन्तीति पित्तास्रवाः-पित्तोद्गारिणः, ' खेलासवा' खेलं श्लेष्माणमास्रवन्तीति खेलास्रवाः= लेष्मनिःसरणशीलाः 'कफ' इति भाषायाम् , 'सुकासवा' शुक्रास्रवाः-वीर्यक्षरणशीलाः, 'सोणियासवा' शोणितास्रवाः-रक्तक्षरणशीलाः 'दुरुस्मासनीमासा' दुरुन्छ्वासनि श्वासाः-बाह्यवायोग्रहणमुच्छ्वासः, देहान्तःसंचारिवायोनिर्गमनं निःश्वासप्रवृत्तिनिवृत्तिनिश्चयाभावात् तयोर्दुःखहेतुत्वमिति भावः। 'दुरूवमुत्तपुरिसपूयबहुपडिपुन्ना' दृरूपमुत्रपुरीषपूयबहमतिपूर्णाः-दुरूपाणि त्सितरूपाणि मूत्रपुरीषपूयानिते सर्वथा प्रतिपूर्णाः, 'उच्चारपासवण खेलजल्लसिंघाण गवंतपित्तमुक्कसोणियसंभवा' उच्चार प्रस्रवण खेलजल्लसिङ्घानकवान्तपित्तशुक्र शोणितसंभवाः तत्र उच्चार:=पुर पं, प्रत. ध्रुव निश्चय समझिये कि ये मनुष्य भव के कामभोग अपवित्र ही हैअशाश्वत हैं-अल्पकाल स्थायी है। वान्तास्रव है-वमनोत्पादक हैं। पित्तात्रय हैं-पित्तोद्गारी है। खेलास्रव हैं- कफ के उत्पादक हैं। शुक्रास्रव हैं-शुक्रवीर्य-धातु को बहाने वाले हैं। शोणितास्रव हैं-खून को सोखने वाले है। (दुसासनीसासा) बुरी तरह से उच्चास और निःश्वास के संचालक हैं। इनको भोगते समय जो श्वासोच्छवास की क्रिया की अधिक रूप से प्रवृत्ति और नित्ति होती है उसका यह निश्चय नहीं हो सकता है कि जो श्वास निकल कर बाहर जा रहा है वह पुनः वापिस आवेगा ही। संभव है नही भी आवे । (दुरुवमुत्तपुरिस पूयबहुपडि पुण्णा) कुरित रूप जिन का है ऐसे मूत्र, पुरीष पूय-पीप, से ये सर्वथा युत्त रहते थे થઈ શકે છે ? અશુચિ પદાર્થ વડે અશુચિ પદાર્થને ભોગ જ શકય બને છે. એટલે હે માતાપિતા ! મનુષ્યભવના કામગ અપવિત્ર છે, આ તમે નિશ્ચિતપણે જાણીલે. એ મનુષ્યભવના કામ અશાશ્વત છે એટલે કે અલ્પકાલીન છે, વાન્તાસવ છે એટલે કે વમનેત્પાદક છે. પિત્તાસ્ત્રવ છે-પિત્તોદુગારી છે. ખેલાવસ્ત્ર છે-કફના ઉત્પાદક छ. शासव-शु-वीय धातु बहुववनाछ-दोडीने पावना छ. (दुरुस्सा. सनीसासा) २७वास मने नि:वासना भय४२ शते सयास छ. मा સંસારના ભેગો ભેગવતાં જે વધારે પડતી શ્વાસોચ્છવાસની ક્રિયા અંદર બહાર આવજા કરે છે, તેના માટે આપણે નિશ્ચિતરૂપે એમ ન કહી શકીએ કે જે શ્વાસ બહાર નીકળી રહ્યા છે, તે ફરી પાછો આવશે જ. એ પણ શકય થઈ પડે કે તે पाछ। न प ावे. (दुरूमुत्तपुरिसपूयबहुपडि पुग्णा) मा संसा२॥ કામગ મૂત્ર, પુરીષ, પૂય, પય, જેવા સાવ કુત્સિત પદાર્થોથી યુક્ત રહે છે. (उच्चारपासवणखेलजल्लसिंधाणगवंतपित्त मुक्कसोणियसंभवा) मामा स्यार For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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