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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ज्ञाताधर्मकथाङ्गसत्रे ३१६ मज्झं मझेणं निग्गच्छिइ, निग्गच्छत्ता जेणामेव गुणसिलए चेइए तेजामेव उवागच्छइ, उवागच्छात्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स छत्ताइछतं पडागाइपडागं विजाहरचारणे जंभएय देवे ओवयमाणे उत्पयमाणे पासइ पासिता चाउरघंटाओ आसरहाओ पञ्चोरुes, पच्चोरुहित्ता समणं भगवं महावीरं पंचविहेणं अभिगमेणं अभिगच्छइ, तं जहा - सचित्ताणं दव्वाणं विउसरणयाए१, अचित्तादव्वाणं अविउ सरणयाएर, एगसोडिए उत्तरा संग करणेणं३, चक्र, प्फा से अंजलिपगणं४, मणसो एगत्ती करणेनं५, जेणामेव समणेभगवं महावीरे तेणामेव उवागच्छइ, उवागच्छित्ता समणं भगवं महावीरं तिक्खुत्तो आयाहिणं पयाहिणं करेइ करिता वंदइ णमंसइ, वंदित्ता णमंसित्ता समणस्स भगवओ महावीरस्स नच्चासन्नेनाइदूरे सुस्सुसमाणे नमसमाणे अंजलिउडे अभिमुहे विणणं पजुवासइ, तपणं समणे भगवं महाबीरे मेघकुमारस्स तीसे य महइ महालियाए परिसाए मज्झ गए विचित्तं धम्ममाइकक्खइ जहा जीवा वज्झति मुच्चंति जह य संकिलिस्iति धम्मकहा भाणियव्वा जाव परिसा पडिगया । सू० २५ ॥ टीका- 'तरण से मेहे' इत्यादि, ततः खलु स मेघकुमारः कंचुइज्ज पुरिसस्स ' कंचुकीय पुरुषस्य = अन्तःपुर प्रयोजननिवेदकद्वारपालस्य 'अंतिए' अन्तिके समीपे तन्मुखादित्यर्थः 'एयमहं ' एतमर्थ = ' श्रीमहावीरः स्वामी समा 'तएण से मेहेकुमारे' इत्यादि टीका -- (तए) इसके बाद ( से मेहे) उस मेघकुमारने कंचुइज्जपुरिस्प कंचुकी पुरुष के ( अंतिए) पास से (एयम सोचा ) इस बान 'त एणं से मेहेकुमारे' इत्यादि । टी अर्थ - (तक्षण) त्यारमाह ( से मे हे कुमार) भेधड्डुभारे (कंचुडज्जपुरिमस्स उं युडी ३षनी ( अंतिए ) पासेथी ( एयमहं सोचा ) या वात सांलणीने ( णिसम्म ) For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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