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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir www.kobatirth.org २७८ शाताधर्म कथाङ्गसूत्रे रीकान् नीलादिमणिविरचितानि विकसितशतपत्राणि-प्रफुल्लितकमलानि स्फटक रत्न निर्मितानि पुण्डरीकाणि श्नेतकमलानि येषु तोन् , 'तिलयरयणद्धय चंदचिए' तिलकरत्नार्धकचन्द्रार्चितान्, तिलक शब्दोऽत्रवृक्षविशेष वाचकः, तेन शोभा स्वास्थ्यादिवर्धक वृक्षण कर्केतनादिभीरन्नैः, अर्धच द्वैः अर्धचन्द्राकारवत्सोपान विशेषैश्च, अर्वितान् युक्तान् ‘णाणामणिमयदामालंकिए' नानामणि म यदामालं. कृतान् विविधमगिभिश्चन्द्रकान्तादिभिः रचितदामाभिर्मालाभिः अलंकृतान् शोभितान् चतुर्दिक्षु योग्ययोग्य स्थलेषु मालासमूहैः सुशोभितान् इत्यर्थः, 'अंतोबाहिं च मण्हे' अन्त बहिश्चश्लक्ष्णान= आभ्यन्तरे बाह्ये च चिकणकान्तियुक्तान्, 'तवणिजरुइल वालुयापत्थरे' तपनी रुचिरवलुका प्रस्तरान्-तपनीयस्यमुवर्णस्य या रुचिरा मनोहरा,वालुका-पांशुः, रेती' इति भाषायां प्रस्तरेषुप्राङ्गणेषु येषां ते तथा तान् अतएव 'सुहफामे' मु वस्पर्शान्. 'मस्पिरो यरूवे' स्फटिक रत्नों के बने थे। और ये वहां प्रफुल्लितरूप में ही अंकित किये गये थे। (तिलयर यणद्धचंदच्चिए) ये सब महल तिलक वृक्ष जो कि शोभा एवं स्वास्थ्य आदि का वर्धक था-तथा कर्केतन आदि रत्नों से एवं अध चंद्राकार वत् सोपान पंक्तियों से युक्त थे। (णागामणिमय दामालकिए) इन महलों की मालाएँ विधि चन्द्रकान्त आदिमणियों से निर्मित थींअर्थात् इन महलों की चारों दिशाओं में योग्य योग्य स्थलों पर चन्द्र कान्त आदि मणियों से निर्मित मालाएँ लटक रहीं थीं इससे इनकी शोभा में मानो चन्द्रमा लगे हुए हे ऐसे मालूम पडते थे। (अंता बहिच. मण्हे) इनकी भीतरी गहिरी कांति विशेष चिक्कण गुण युक्त थी। (नकणिजरुइल वालुयापत्थरे) इन के प्रांगण में सुवर्ण की मनोहर रेती विछी हुई थी। (सुहफासे) इसीलिये इनका स्पर्श विशेषरूप में सुखप्रद था। સ્કટિક રત્નનાં પુંડરીક (શ્વેત કમળ) બનેલાં હતાં. અને તે બધાં વિકસિત આકારના ५ मत थय हुतi. (तिलयरयणद्धचंदच्चिए) ॥ ५धा महतो शाम भने સ્વાથ્ય વગેરેની પુષ્ટિ કરનાર તિલકવૃક્ષ અને કેતન વગેરે રત્નોથી તથા અર્ધ यन्द्र।।२ सोपानश्रेणिथी शोलता au. (णाणा मणिमयदामालंकिए) मा भवानी માળાઓ વિવિધ ચન્દ્રકાંત વગેરે મણિઓ દ્વારા નિર્મિત થયેલી હતી. એટલે કે આ મહેલની ચોમેર યોગ્ય સ્થાન ઉપર ચન્દ્રકાંત વગેરે મણિઓ દ્વારા બનાવવામાં આવેલી માળાઓ લટકતી હતી એથી જાણે કે એમની શોભામાં વૃદ્ધિ કરવા માટે ચન્દ્ર सागेसा छ मेम. सातु तु. (अंतो बहिं च सण्हे) २॥ भवानी ४२ मने मारनी शामा सुस्थिती (तवणिजरुइलवालयापत्थरे) ओमना योभा सोनानी सुह२२ पाथरेवी ती.(सहफासे) मेथी २४ मेमने। २५ विशेष सुण छतो. For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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