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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org E8 ज्ञाताधर्मकथाङ्गसत्रे स तवणिजरुइलवालापत्थरे सुहफा से सस्सिरीयरूवे पासाईएजात्र पडिवे एगं चणं महं भवणं कारेंति, अणेगखंभसय सन्निवि लीलायसालभंजियं अब्भुग्गय सुकयवइरवेइयाओ तोरणवर रइयसालभंजिया सुसिलिड वेसिलठियपसत्थवे रुलियखंभनाणामजिकणगरयणख चियउज्जलं, बहुसमसुविभत्तनिचियरमणिज्जभूमिभागं ईहामिय जाव भत्तिचित्तं खंभुग्गवयर वेइया भरामं विजाहर जमलजुयलजुत्तं पिव अच्छीसहस्समालणीयं रूवगसहस्सकलियं भिमाणंर भिब्भिसमाणं चक्ोयणलेसं सुहफासं सस्सिरीयरूवं कंचणमणिरयणय भियागं नाणाविह पंचवन्नघंटा पडागपरिमंडियग्ग सिरं धवलमरीsaai विणिम्मुयंत लाउलोय महियं जाव गंधवहि भूयं पासाईयं दरित णिनं अभिरुवं पडिरुवं ॥२२॥ सू०॥ टीका---' तरणं' इत्यादि । ततः तदनन्तरं खलु स मेघकुमारः 'बावतरि कलापंडिए द्वासप्ततिकला पण्डितः =द्वासप्ततिकलामर्मज्ञः 'णवंगसुतपडिबोहिए' नवाङ्गप्रतिबोधितः=नवाङ्गानि द्वे श्री नयने द्वे नासिके, जिहैव बैंका वगेका, मम् सुतानी सुप्तानि बाल्याद्वयक्तवेतनारहितानि तानि परिष Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 'तएण से मेहेकुमारे' इत्यादि टीकार्थ - (तरणं) इसके बाद ( से मेहेकुमारे) वह मेघकुमार जो कि (बारिला पंडिए) ७२ कलाओं को अच्छी तरह सोख चुका था जब (सुतपडिवोहिए) अपने सुप्त व अंगो का प्रतिबोधक वन गयाअर्थात् बाल्यावस्था में दो, कान दो नेत्र, एक जिal, एक स्पर्शन इन्द्रिय For Private and Personal Use Only · 'त एवं से मेहेकुमारे' इत्यादि ॥ टीअर्थ - (तपणं) त्यार माह ( से मेहेकुमारे) मेघकुमार नेमणे ( बावन्तरिफला पंडिए) मतिर मोनु सारी रीते ज्ञान भेणव्यु छे-सेवा ते भेघकुमारने न्यारे (वंगत पडिवोहिए ) पोताना सुप्त नव संगोनो प्रतिशोध थयो भेटले કે બાળપણમાં એ કાન, બે આંખો, એ નાક (નાસા છિદ્રો) એક જીભ, એક સ્પ ઇન્દ્રિય તેમજ એક મન આ નવ અંગે સુપ્ત જેવા રહે છે, પણ જ્યારે યુવાવસ્થા
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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