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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका अ१ स २० मेघकुमारपालनादिनिरूपणम् २६९ गरुडाकृति सेनानिवेशनपरिज्ञानम्५, 'सगडब्बूह' शकटव्यूह-शकटाकृति सैन्य रचमम्,५२, 'जुद्धं' युद्ध-कुकुटादिवद् युद्धकरणमू "जुद्धं' इत्यत्र समवायाङ्गोक्तस्य 'दंडजुद्धं' इत्यस्य तथा जम्बूद्वीपमज्ञप्तिकथितस्य 'दिठ्ठिजुद्धं' इत्यस्य च समावेश:५३, निजुद्धं' नियुद्धं मल्लवत् युद्करण म्५४, 'जुदाइजुद्धं' युद्धाति युद्धं खङ्गादि प्रहारपूर्वक महायुद्धम्५५, 'अद्विजुद्धं' अस्थियुद्धं अस्थियुद्धकरण कलाज्ञानम्५६, 'मुट्ठिजुद्धं' मुष्टिजुद्धं-पोधमनियोधयोः परस्परं मुष्टयाहननम्५७, 'बाहुजुद्धं' बाहुयुद्ध-योधप्रतियोधयोः परस्परं भुजाभ्यामाघातकरणम्५९, 'लयाजुद्धं' लतायुद्धं द्वद्विप्रति द्वन्द्विनोः परस्परं लताभिः परिताडनम्५९, ईसत्थं' इषुशास्त्रं नागवाणादि दिव्यशस्त्रमूचकं शास्त्रज्ञानम्६०, 'छरुप्पवायं' सरुमा. पातंत्सरु:खमुष्टिः, यद्यपि त्समः खङ्गमुष्टिःस्यात् तथापि अवयवग्रहथात् ग्रहणेऽवयविग्रहणात् खजाहणम् , तस्य प्रपातः पहरणं, तमित्यर्थः६१, 'धनुव्वेयं' धनुर्वेदं धनुर्विद्यां६२, हिरन्नपागं' रिप्यपाकं-रजत रसायनपरिज्ञा सार मैन्य का स्थापना करना ५१, शकटव्यूह-गाडी के आकार में सैन्य का स्थापना करना ५२, युद्ध कुक्कुट आदि की तरह युद्ध करना ५३, नियुद्धमल्लों की तरह परस्पर में युद्ध करना ५४, युद्धातियुद्ध-खड़ आदि द्वारा प्रहार करते हुए महा युद्ध करना ५५, अस्थियुद्ध-अस्थियों से युद्ध करने की तरकीब जानना ५६, मुष्टियुद्ध-मुट्ठियों से परस्पर में पहार करना ५७, बाहु, युद्ध-मुभटों और प्रतिसुभटो का आपस में हाथों से युद्ध होना ५८, लतायुद्ध-द्वन्द्वी प्रतिद्वन्द्वीयों का परस्पर में लताओं द्वारा युद्ध होना ५५, इषुशास्त्र नागवाण आदि दिव्यशस्त्र सूचकशास्त्रों का ज्ञान होना ६०, सरुषपात-खों से प्रहार करना, ६१, यद्यपि त्सरु शब्द का अर्थ बमुष्टि होता है फिर भी अवयके ग्रहण से अवयवी का ग्रहण होता है। हम नियमके अनुसार यहाँ 'सरु' से खड़ આકાર મુજબ સેના ગોઠવવી, (૫૧), શકટ બૂહગાડીના આકારમાં સેનાની સ્થાપના કરવી, (૫૨), યુદ્ધ કુકકુટ વગેરેની જેમ યુદ્ધ કરવું (૫૩), નિયુદ્ધ-પહેલવાનની જેમ એક બીજાની સાથે લડવું (૫૪), યુદ્ધાતિયુદ્ધ, ખડગ વગેરેને ઘા કરતાં મહાયુદ્ધ ४२. (५५), अस्थि युद्ध-मस्थिय द्वारा युद्ध ४२वानी रात नवी (५६), भुष्टि યુદ્ધ મુઠીઓથી પ્રહાર કરીને લડવું. (૫૭) બાહુ યુદ્ધ-સુભટ અને પ્રતિ સુભટનું એક બીજાની સાથે યુદ્ધ થવું (૫૮), લત્તાયુદ્ધ દ્વન્દી પ્રતિદ્વન્દીઓમાં પરસ્પર લતાઓ દ્વારા યુદ્ધ થવું, (૫૯), ઈષશાસ્ત્ર-નાગબાણ વગેરે દિવ્ય શસ્ત્ર સૂચક શાસ્ત્રોનું ज्ञान थयु (६०), सरु अपात-1391 वारा प्रहार ४२३।, (११), ने स२-शहने। અર્થ ખડગ મુષ્ટિ હોય છે, છતાં એ અવયવના ગ્રહણથી અવયવીનું ગ્રહણ હાય જ છે” આ નિયમ મુજબ અહીં “સરુ” દ્વારા ખડગ ગ્રહણ કરવામાં આવ્યું છે. ધનુર્વેદ-ધનુષ ચલાવવાની વિદ્યા જાણવી. (૬૨), હિરણ્ય પાક ચાંદી દ્વારા રસાયને For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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