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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टाका. अ.१ २० मेघकुमारपालनादिवर्णनम् २५७ काभिः किरातदेशोत्पन्नाभिः१, “वामणी-वडभोर, बब्बरी२, बउसी३, जोणिया४, पल्हरिया५, इमिणिया६, धोरुगिणी७, लासिया८, लउसिया, दमिलो १०, सिंह ली११, आरबी१२, पुलिंदी१३, पकणी१४, पहली१५, मुरुंडी१६, सबरी१७, पारसीहिं१८” वामनी-बडभी-बर्बरी२, बकुसी३, योनिका४, पल्हविका५, ईशिनिका६, धोरुकिनिका७, लासिका८, लकुसिका९, द्राविडी१० सिंहली ११, आरबी१२. पुलिन्दी१३, पकणी१४, बहली१५, मुरुण्डी१६, सबरी१७, पारसीभिः१८, 'वामणी' वामनीभिः इस्वशरीराभिः, 'वडभी' बडभीभिः एकपार्श्वहीनाभिः एतादृशीभिः 'बब्बरी' वर्षरीमिावर्षर देशसंभवाभिः२, 'वउसी' वकुक्षिकाभिः३ 'जोणिया' योनिकाभिः योनदेशोद्भवाभिः४, पल्हविया'पल्ह विकाभिः५ इसिगिया' ईशिनिकामिः६, 'धोरुगिणी' धोरुकिनिकाभि:७, 'लासिया' लासिकाभिः८, 'उसिया लकु. वामणि-वडभि-बबरि बडसि-जोणिय-पल्हविण-इसिणिया-धोगिणिलासिय-उसिय-उसिय-दमिलि-सिंहलि-आरचि-पुलिदि-पक्कणि-बहलिमुरुंडि-सबरि-पारसीहिणाणादेसीहि विदेसवेसपरिमंडियाहिं इंगियणचिंतिय पत्थिय वियाणियाहि सदेमणेवत्थगहियवेहिं निउणकुसलाहिं विणीयाहिं चेडिया चकवालबारेमधाकंचुइमहयर गदिपरिक्ख') अन्य अनेक कुब्जक शरीर वाली किरात देश को त्रियों से (बोना) वामन शरीर वाली तथा एकपा से विहीन ऐसी वबर देश की दासीयों से बकुश देश की वासियो से यौन देश की दानियों से पदमिकाओ से ईशिनिकायों सेईशान देशकी दामियों से धौनिकाओं से धौरुनकदेश की दामियों से, लामिकाओं से-लायकदेश की दासियों से.-लकुशदेश की बहूटिं खुजाहि, चिलाइहि वारणि वर्गडभि-रि-वडसि-जोणिय-पल्हविइमिगिया-धोरुगिणि-लानिय-ल उसिय-उसिय-दमिलि-सिंहलो-आरविपुलिंदि-पक्कणि-वहलि-मुसंडि-सबरि पारनीहिं णाणादेसीहि विदेसवेम परिमंडियाहिं इंगिय चिंनिय पत्थिय विभागियाहिं सदेसणेवत्थगहिय वेसाहि निउणकुसलाहिं विणीयाहिं चेडियाचक्कालवरिसधरकंचुइ महयागविंदपरिविवत्ते सने पीठ घणी ४५४ शनी शित शिनी स्त्रीमाथी, ઠીંગણુ શરીરની તેમજ એક તરફના પાર્શ્વની બર્બર દેશની દાસીઓથી, કુશદેશની દાસીઓથી, યૌનદેશની દાસીઓથી, પલ્લવિકાઓથી–પ©વદેશની દાનીઓથી, ઈશિમિકાઓથી ઈશાનદેશનીદાસીઓથી, ધીરુનિકાઓથી–ધીનકદેશની દાસીઓથી લકુશાઓથીલકશદેશની દાસીઓથી, દ્રાવિડીઓથી-દ્રાવિડ દેશની દાસીઓથી, સિંહલીઓથી–સિંહલ 33 For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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