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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १३६ www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private and Personal Use Only ज्ञाताधर्मकथाङ्ग मूलम् - तएण से सेणिए राया अप्पणो अदूरसामंते उत्तरपुरत्थिमे दिसिभाए अट्ट भासणाई सेयवत्थपन्चुत्थुयाई सिद्धत्थमंगलोवयारकयसंतिकम्माई रयावेइ, रयावित्ता णाणामणिरयणमंडियं अहियपेच्छणिजरूवं, महग्धवरपट्टणुग्गयं सण्हबहुभत्तिसयचित्तद्वाणं, ईहा- मय - उसभतुरय - णर-मगर - विहग-वालग - किंनर- रुरु- सरभचमर कुंजर वणलय प3मलय-भत्तिचित्तं, सुखचिय-वरकणग- पवरपेरंत देसभागं, अभितरियं जवणियं अंछावेइ, अंछावित्ता अत्थरय-मउअ मसूरग-उच्छइथं धवलवत्थपच्चुत्थुयं विसिद्धं अंग सुहफासयं सुमउयं धारिणीए देवीए भासणं रयावेइ श्यावित्ता कोडुंबिय पुरिसे सदावेइ सदावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया! अहंगमहानिमित्तत्तत्थपाढए विविहसत्थकुसले सुमिणपाढए, सदावेह सद्दावित्ता एयमाणत्तियं खिप्पामेव पच्चपिणह । तएणं ते कोडुं बियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवंवृत्ता समाणा हट्ट जाव हियया करयल परिग्गहियं दसनहं सिरसावत्तं मत्थए अंजलि कट्टु एवं देवो तहत्ति' आणाए विणणं पडिसुणेइ, पडिसुणेत्ता सेणियस्स रन्नो अंतियाओ पडिनिक्खमंति, पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स नगरस्स मज्झमझेणं जेणेव सुमिणपाढगगिहाणि तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता सुमिणपाढए सहावेंति । एणं ते सुमिणपाढगा सेणियस्स रन्नो को डुबि - यपुरिसेहिं सदाविया समाणा हट्ट जाव हियया पहाया कयबलिकम्मा जाव पायच्छित्ता अप्पमहग्धाभरणालंकिय सरीरा हरियालिय सिद्धत्थयकयमुद्धाणा सएहिं सएहिं गिहिंतो पडि निक्खमंति पडिनिक्खमित्ता रायगिहस्स मज्म ज्झेणं जेणेव सेणियस्स रन्नो भवणवडेंसगदुबारे तेणेव उवागच्छंति, उवागच्छित्ता एगयओ मिलंति, मिलित्ता सेणियस्स रन्नो भवणवडेंसगदुवारेणं अनुपविसित्ता जेणेवहबाहिरिया
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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