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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणी टोका.सू,१०उपस्थानशालासज्जीकरणादिनिरूपणम् १३३ तेषां दामानि-मालाः, तैः सहितेन छत्रेण भृत्येन ध्रियमाणेन शोभमानः 'उभओ' उभयतः दक्षिणबामपार्श्वयोः 'चउचामरवालबीइयंगे' चतुश्चामर बालबीजिताङ्गः, चतुर्णी चामराणां बालः केशैः वीजितान्यङ्गानि यस्य स तथा, 'मंगलजयसद्दकयालोए' मंगलजयशब्दकृतालोकः, मंगलजयशब्दःकृतो अनेन आलोके दर्शने यस्य स तथा, मज्जनगृहात्पतिनिष्कामति, प्रतिनिष्क्रम्य 'अणेगगणनायगदंडणायगराईसरतलवरमांडविय कोडुबिय मंति महामंति गणगदोबारिय. अमच्चचेडपीढमद्दनगरणिगमइब्भसेडिसेणावइसत्थवाहदयसंधिवालसद्धिं संपरिखुडे' अनेक गणनायक दंडनायक राजेश्वरतलबरमाडंविककौटुम्बिकमंत्रिमहामन्त्रिगणकदौवारिकामात्यचेटपीठमर्दनगर निगमेभ्यश्रेष्ठिसेनापतिसार्थवाहदुतसंधिपालै सार्ध सम्परितः। नत्र गणनायकाः सामन्तभूपाः, दंडनायकाः-अपराधिषु यथायोग्य दण्डमदानशीलाः कोपाला इत्यर्थः राजानः=माण्डलिकाः नरपतयः, छत्रतान रखा था वह कोरण्ट के पुष्पों की माला से युक्त था-(उभओ चउचामरवालवीइयंगे मंगलजयसद्दकयालोए) दक्षिण और वाम पार्श्व में जो इनके ऊपर चमर ढोले जा रहे थे। उनके बालों से इनके अंग विजित हो रहे थे। इनके देखते ही लोग जय हो इस प्रकार का मंगलकारी शब्द बोलने लग जाते थे। (मज्जणघराओपडि निक्खमइ) जब थे राजा उस ग्नान घर से बाहर निकले और (पडिनिक्खमित्ता) निकल कर-(अणेगगण नायक दंडणायगराईसरतलवरमाडंबियकोडुवियमंतिथहामंतिगणगदोवारिय अमच्च चेडपीढमद्दनगर निगम इन्भसेहिसेणायइ सस्थवाहदयसंधिवाल सद्धि संपररिवुडे) अनेक गण नायकों से-सामंत भूपों से अपराधियों को यथा योग्यदंड देने वाले अनेक दंडनाय को से अर्थात् कोटवालों से मांडઉપર નેકરે તાણેલું છત્ર કેરટ (એક પુષ્પવિશેષ) ના ફૂલની માળાથી શોભતું હતું. (उभओ चउचामरवालवीइयंगे मंगलजयसहकयालोए) भनी भने ડાબી બાજુએ એમના ઉપર ઢળવામાં આવેલા અમરેના વાળથી એમનાં અંગ વિજિત થઈ રહ્યાં હતાં. એમને જોતાં જ લોકો “ય થાઓ, જ્યથાઓ” એવા મંગલ સૂચક शुल्हो या२वा भांडता तi. (मज्जणघराओ पडिनिक्वमह) न्यारे ते रात स्नाना॥२माथी मा२ माव्या भने [पांडनिक्वमिना] आवीन (अणगगण मायकदंडणायगराईसरतलवरमाडंबियकोडंबियमंतिमहामंतिगणदोगवारिय अमच्चचेडपो डमदनगरनिगमइन्भसेटिसेणायइसंस्थवाहइयसंधिवालसद्धिं संपरिबुडे) અનેક ગણનાયકેથી, સામંત ભૂપોથી, અનેક દંડનાયકેથી એટલે કે કોટવાળેથી, માંડલિક નરપતિરૂપ અનેક રાજાઓથી, ઐશ્વર્યવાન અનેક પુરુષથી, For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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