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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनगारधर्मामृतवर्षिणीटीका. सू. १० उपस्थानशाला सज्जी करणादिनिरूपणम् ११९ लोए मज्जण घराओ पडिनिक्खमइ, पडिनिक्खमित्ता अणेगगणनायगदंड नायगराई सरतलबरमाडंबिय कोडुवियमंतिमहामंतिगणदोवारिय अमच्चचेडपोढमद्दनगरनिगमइव्भ से डिसेणावइ सत्थवाह दूय संधिवालसद्धिं संपरिवुडे धवलमहामेह निग्गए विव गहगणादिष्पंत रिक्खतारा गणाणमज्झे ससिव्व पिपदंसणे नरवई जेणेव बाहिरिया उवहाण - साला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता सीहासणवरगए पुरस्थाभिमुहे सनि ॥सू० १० ॥ टीका--' तरणं सेणिए राया' इत्यादि । 'पच्चूसकालसमयंसि ' प्रत्यूषकालसमये - प्रभातलक्षणे 'समये' अवसरे कौटुम्बिकपुरुषान् शब्दयति = आयति, शब्द यित्वा एवमवदत् भो देवानुप्रियाः ! 'बाहिरयं उवद्वाणसाला ' बाह्यां वहिर्भूतां जनानामुपवेशनाय उपस्थान शालाम् आस्थानमण्डपं इत्यर्थः 'अज्ज' अद्य सविशेषां= वक्ष्यमाणविशेषणविशिष्टां परमरभ्याम्, उत्कृष्टशोभासहितां 'गंधोदगसित्तसुइयसंमज्जिओ वलित्तं' गन्धोदकसिक्त शुचिकसंमार्जितोपलिप्तां तत्र गन्धोदकेन 9 तएण सेणिए राया इत्यादि सूत्र ||१०|| टीकार्थ - (तए) इसके बाद [ सेणिए राया ) श्रेणिक राजाने (पच्चूसकाल समयंसि ) प्रातःकाल के समय (कोडुंबिय पुरिसे) कौटुम्बिक पुरुषों को (सावे) बुलाया । (सदावित्ता) बुलाकर उनसे ( एवं व्यासी) ऐसा कहाभो देवाणुपिया) हें देवानुप्रिय ! आप लोग (खिप्पामेव ) शीघ्र ही (बाहिरियं) नगर के बाहर - ( अज्ज) (उद्वाण सालं) आस्थान मंडप को (सविसेस) विशेष रूप से (परमरम्मं ) अत्यंत रमणीय - उत्कृष्ट शोभा सहित सजाओ (गंधोदगत्तिसुइयं संमजिओरलित्तं) तथा उसे गंधोदक से सिक्त तपणं सेणिए राया इत्यादि || सूत्र १०|| रीडार्थ – (तपणं) त्यारमाह (सेणिए राथा) श्रेणि शन्नये ( पच्चूमकाल समय स) सवाना वषते (कोडुं वियपुरिसे) उटुंगना भाणुसोने (सहावेइ) गोसाव्या. ( महावित्ता) गोसावीने तेभने ( एवं वयासी) या प्रमाणे अधु - (भो देवपिया) हे देवानुप्रिय ! तभे ( खियामेव ) ४ही (बाहिरियं) नगरनी महार (अज्ज) मा ( उवद्वाणसालं) आस्थान -भउपने (सविसेसां) विशेषश्यभां (परमरम्भं) भूमन भनोहर - अतीव शोला युक्त शशुगारो (गंधोदग सित्तमुइयं संमज्जिवलितं) તથા ગંધાદકવડે તેનું સિંચન કરો અને પવિત્ર મનાવા. For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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