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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org अनगारधर्मामृतवर्षिणी टीका. सू. १०उपस्थानशालासज्जीकर णाः निरूपणम् ११७ मूलम्-तएणं सेणिए राया पहूसकालसमयंसि कोडुबियपुरिसे सवे सदावित्ता एवं वयासी - खिप्पामेव भो देवाणुप्पिया ! त्राहिरियं उवट्टाणसालं अज्ज सविसेसं परमरम्मं गंधोद्गसितसुइयसंमज्जि ओवलितं पंचवन्नसरस कुरभिमुक्कपुष्फ पुंजोक्यारकलियं कालागरुपवर कुंदरुब तुरुक्क धूयडज्डांत मघमत गंधु याभिरामं सुगंधवर गंधियं गंधवहियं करेह य कारवेह य करिता कारवित्ता य ऐयमाणत्तियं पञ्चपि । तणं ते कोटुंबियपुरिसा सेणिएणं रन्ना एवं कुत्ता समाणा हट्टा जाव पच्चष्पिणंति । तएणं सेणिए राया कलं पाउ प्पभायाए रयणीए फुल्लप्पल कमलको मलुम्मिलियंमि अहापंडुरे पभाए रत्तासोगपगासकिंसुयसुयमुह गुंजद्वरागबंधुजीवगपारावयचलणनयणपरहुय सुरत्तलणजासुयण कुसुम जलिय जलण तवणिजकलसहिंगुलयनिगर रुवाइ रंग रेहन्तसस्सिरीए दिवागरे अहकमेण उदिए तस्स दिणकरपरंपरावयारपारमि अंधयारे बालातवकुंकुमेण खइयव्व जीवलोएलोयविआणु आसविगसंतविसददं सियंमि लोए कमछारसंडबोहर उट्टियंमिसूरे सहस्सरस्सिमि दिणयरे तेयसा जलते सर्याणिजाओ उइ उट्ठित्ता जेणेव अट्टणसाला तेणेव उवागच्छइ उवागच्छित्ता अट्टणसालं अणुपविसइ अणुपविसित्ता अणेगवायामजोगवग्गणवामद्दणमलजुद्धकरणेहिं संते परिस्संते सयपागेहिं सहरसपागेहिं सुगंध वरतेलमा दिएहिं पीणणिजे हिं दीवणिजेहिं दप्पणिजेहिं मदणिज्जेहिं विहणिजेोहं सव्विंदियगायपल्हायणिजेहिं अब्भं समस्त वह २ त्रस्तु है वही हमारा धर्म है | ||९|| Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जिसके प्रभाव से उन्हें सब तरफ से प्राप्त हो जाती For Private and Personal Use Only
SR No.020352
Book TitleGnatadharmkathanga Sutram Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanhaiyalalji Maharaj
PublisherA B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
Publication Year1963
Total Pages762
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_gyatadharmkatha
File Size24 MB
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