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आठवें गणधर - अकंपित
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नारक हैं क्या ?
अब ठवें प्रकंपित नामक ब्राह्मण आएं। उनसे प्रभु कहते हैं - 'न ह वै प्रेत्य नारकाः सन्ति ।' 'नारको वै एष जायते यः शुद्रान्नमश्नाति ।' ऐसे दो प्रकार के विरोधी वेद वचन तुम्हें मिलने से कि 'परलोक में नारक हैं नहीं' तथा 'शूद्र' का प्रश्न जो खाता है, वह नरकगामी होता है' यह जान कर तुम्हें शंका हुई कि नारक होंगे या क्या ?
नारकों का न होना इसलिए लगा कि चंद्रादि तथा अन्य भी देव तो अब भी प्रत्यक्ष हो, परन्तु नारक कहां दीखते हैं ? देव, मनुष्य, तिर्यंच से सर्वथा विलक्षण नारक जैसे कोई हों ऐसा अनुमान भी कैसे हो ? परन्तु
नारक सत्ता के ये प्रमाण हैं:
(१) तुम्हें केले को नहीं दीखते, अतः नारक नहीं, ऐसा है ? ऐसी तो सिंह बाघ प्रादि जैसी भी तो वस्तुएं होती हैं न ? फिर 'अकेली बाह्य इन्द्रिय से दीखे, वही प्रत्यक्ष' - ऐसा नहीं है, श्रात्म- प्रत्यक्ष से सर्वज्ञ को दीखता है । इस
प्रकार,
इन्द्रिय व्यापार से जो ज्ञात हो वह वास्तव में प्रत्यक्ष ही नहीं क्यों कि इन्द्रिय-व्यापार बन्द होते हुए भी वस्तु होती है । इन्द्रिय- प्रत्यक्ष तो अनन्तधर्मात्मक वस्तु में से प्रति अल्प धर्मं को
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इसी तरह देखता है,
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