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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सातवें गणधर-मौर्यपुत्र क्या देवता हैं ? सातवें मौर्यपुत्र नामक ब्राह्मण पाए । उन्हें शंका थी कि देव स्वर्ग है या नहीं ? उनसे प्रभु कहते हैं- 'को जानाति मायोपमान गीर्वाणान्' 'स एष यज्ञायुधी यजमानोऽञ्जसा स्वर्गलोकम् गच्छति' इस प्रकार दो तरह की वेद-पंक्ति मिलने से तुम्हें देव के होने के विषय में शंका हुई कि 'माया-इन्द्रजाल जैसे देव किसने देखें ?'-इससे अर्थात् देव नहीं, ऐसा प्रतीत होता है; व 'पापवारण के लिए शस्त्रसमान यज्ञवाला यजमान स्वर्ग लोक जाता है' इस वचन से देव हैं। ऐसा ज्ञात होता है। देव का न होना इसलिए लगा कि नारकीय जीव तो परतन्त्र होने से यहां नहीं पा सकते, परन्तु स्वेच्छाचारी और दिव्य प्रभाव वाले माने गए देव यदि हों, तो क्यों न पाएं ? पाते नहीं हैं यह देव का प्रभाव सूचित करता है। परन्तु देव सत्ता के ये प्रमाण हैं :(१) समवसरण में देव प्रत्यक्ष दीखते हैं। (२) ज्योतिष विमान ये स्थानरूप होने से महल की भांति किसी का उसमें निवास होना चाहिये; यही निवासी देवताओं का एक वर्ग है । इन्हें विमान इसलिए कहते हैं कि ये रत्नमय हैं, और आकाश में नियतरूप से विचरण करते हैं । पवन, मेघ, अग्नि का गोला रत्नमय नहीं इसलिए किसी का निवास नहीं । For Private and Personal Use Only
SR No.020336
Book TitleGandharwad
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBhanuvijay
PublisherJain Sahitya Mandal Prakashan
Publication Year
Total Pages128
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
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