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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir REC- बृहद्वृत्तिः यह वृत्ति उपलब्ध-वृत्तियों में सबसे प्राचीन और बड़ी है । श्लोकसंख्या १२००० हजार है। आचार्यवर्या-श्रीजिनपतिसूरिजी के | विद्वान् प्रतिभासंपन्न शिष्य श्रीसुमतिगणिने वि. सं. १२९५ में इसे स्तंभतीर्थ से प्रारंभ कर क्रमशः प्रामानुग्राम विचरण करते करते मंडूप दुर्ग-मांडवगढ में समाप्त की, प्रथमादर्श श्रीजिनेश्वरसूरिजी के शिष्य कनकचंदने लिखा, यह अत्यन्त वृत्ति विहार में ही निर्माण हुई का है वह भी ऐसी अवस्था में जबकि एक ही स्थान पर सर्व प्रकार का साहित्य अनुपलब्ध था । यह इनकी बहुमुखीप्रतिभा का ही सुफल है, वर्ना इतना उत्कृष्ट काव्यालंकार युक्त ग्रन्थ निर्माण होना असंभव था । उपरोक्त वृत्ति में १५० गाथाओं का अत्यन्त सुन्दर रीति से विस्तृत विवेचन किया गया है । कहीं कहीं टीकाकार श्रीसुमतिगणिने नूतन ज्ञातव्यनिर्दिष्ट किये है जो विषय को समझने में सहायता करते हैं, यद्यपि वृत्ति गिर्वाण गिरा में गुम्फित है तथापि प्रसंगानुसार उसमें संस्कृत प्राकृत अपभ्रंश भाषाओं के १ प्रारब्धा श्रीस्तंभतीर्थे वेलाकूले कुले श्रियाम् मंण्डपद, विबुधैः खर्गे चेयर्थिता ॥६॥ प्रथमादर्श लिखिता, वृत्तिरियं श्रीजिनेश्वरगुरूणाम् ॥ अस्मद्गुरु गुरू पट्टप्रतिष्ठिताना, प्रभावताम् शिष्येण परोकते, तपसिचवरोधडेन ॥ ७ ॥ कायोत्सर्गेऽतन्द्रेण, साधुना कनकचन्द्रेण ॥ ८ ॥ RECAR 646456k शरनिधिदिनकरे (१२९५) संख्ये, विक्रमवसे गुरौ द्वितीयायाम् राधे पूर्णाभूता वृत्तिरियं नन्दतात्सुचिरम ॥ गणधरसार्द्धशतकवृहद्वृतिप्रशस्ति । For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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