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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagersuri Gyanmandir गणधर सार्द्ध शतकम् । 964451 अनेक पद्य उद्धृत किये हैं जो तत्कालीन भाषा का अध्ययन प्रस्तुत करते हैं। बहुत से प्रभावकों के जीवन विवेचन प्राकृत पद्यों में किया गया है, जैसे कि कोई नियुक्ति ही हो, भाषा का प्रवाह इस भांति प्रवाहित हुआ है कि, मानो एक ही बैठक में लिखा गया हो, कहीं पर भी छिन्नभिन्नता के दर्शन नहीं होते, अनुप्रास तो इसकी प्रधान संपत्ति है, अलंकारों का बाहुल्य है, एतद्विषयप्रतिपादनार्थ अनेक साहित्यिक विद्वानों के-जैसे कि रुद्रट, मम्मट, अमरसिंहादि-मूल अभिमंतव्य संग्रहीत किये हैं, व्याकरणाचार्यो के भी अभिमत निर्दिष्ट है, इसमें "शब्दरत्नप्रदीप" नामक कोशग्रन्थ के अनेक उदाहरण दिये हैं, यह कोश आज संभवतः अनुपलब्ध है, यदि इस वृत्ति को संस्कृत गद्य का एक उत्कृष्ट नमूना कहें तो कोई अतिशयोक्ति न होगी, इसके वाक्य कादंबरी और गद्य चिंतामणि का स्मृति कराते हैं, इतना होते हुस भी ऐतिहासिक दृष्टि से भी इसका महत्व कम नहीं, गूजरात के इतिहास की साधनसामग्री इसमें विस्तृत रूपेण उपलब्ध होती है, अणहिलपुरपत्तन का वर्णन इसमें खूब विस्तृत और मनोरंजनात्मक ढंग से दिया है, नाटक के १० लक्षणों से तुलना कर कविने अपनी विद्वत्ता का सुपरिचय दिया है । प्रत्येक व्यक्ति को अनेक विषयों पर लिखना सहज है या एक ही विद्वान अनेक विषयों पर लिखना सहज है या एक ही विद्वान अनेक विषयों पर लिख सक्ता है या आत्मविचार प्रदर्शित कर सक्ता है, पर एक ही विषय विस्तृत विवेचनात्मक दृष्टि से लिखना अत्यन्त कठीन कार्य है, ऐसे कठीनतम कार्य में श्रीसुमतिगणिने अद्वितीय सफलता प्राप्त की है, यह उनके अध्यवसाय के अतिरिक्त और क्या हो सकता है, इनकी यह वृत्ति एक भाष्य को सुशोभित करे ऐसी मननात्मक टीका है, जहां पर जिस विषय पर उल्लेख आया वहीं पर प्रणेताने उस विषय को अनेक शास्त्रीय प्रमाणों से बड़ी ही योग्यता व अकाट्य युक्तियों से समार्थत किया है, कही २ जैनागमों चूर्णियों के %AAAACHECE KEECH For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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