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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsur Gyanmandie %95 % संस्कृत भाषा में गुम्फित की है, कारण कि उस समय इसी भाषा का प्राबल्य था। ठीक उसी प्रकार आज कल हिन्दी-जो भारत की राष्ट्रभाषा होने जा रही हैं-का प्राबल्य है, अतः जितना प्रचार इस भाषाद्वारा हो सकेगा, उतना अन्य कोई भाषा द्वारा होना असंभव नही तो कठिन अवश्य है । मेरे बहुसंख्यक जैनेतर परिचित जैनसाहित्यानुरागी विद्वान हैं, पर हिन्दी भाषा में जैन साहित्य अनुवादित न होने से वे ऐसे महत्व के लाभ से सदा के लिये वंचित से रह जाते है । कहने का मतलब यही कि जैन साहित्य का प्रचार हिन्दी द्वारा होना चाहिये। आचार्य शीलांक: आप भी स्वसमय के उद्भट विद्वान् और वृत्तिकार थे। द्वादशाङ्गपर पूर्व आपने वृतिये निर्माण करने का कहा जाता है । वि० स० ९२५ में आपने १०००० सहस्त्र श्लोक प्रमाण में प्राकृत भाषा में महापुरुष चरित्र की रचना की, जिस में ५४ महापुरुषों का जीवन है, जो हेमचन्द्रसूरि के त्रिशष्ठिशलाकापुरुषचरित्र का मूळाधार है । ये आचार्य कोन थे? किनके शिष्य थे। ये जानने के साधन नही। गणधरसार्धशतक वृहद्वृत्ति से विदित होता है कि, वे संभवतः चैत्यवासी थे। अतः ग्रन्थकारने नमस्कार न करते हुए स्मरण मात्र ही किया है, जैसा कि बृहदवृत्ति से सूचित होर्ती है। २३. नन्वेष शीलांकश्चैत्यवासीत्यस्माभिः श्रुतम् । एष सद्वृत्ति विधानेन लोके प्रतिष्ठापात्र ज्ञानाधिकत्वेन प्रभावकच “ नाणाहिमओ बरतरं हीणोवि | हु पबयणं प्रभावितो" इत्याप्त वचनप्रामण्या देतस्यादि प्रशंसामात्रमुचितमवे वंदनंतु नोचितम्" । गण०० वृत्ति । ला गण बृ० वृत्ति जब निर्माण हुई थी कर्ता और इनके गुरु जिनपतिसूरि चैत्यवासियों के संडन के व्यस्त थे। संभव है इसी मनोवृत्ति का प्रभाव प्रकृत वृत्ति पर भी पड़ा हो । KROACCACAREACCESC For Private and Personal use only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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