SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 24
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधर N साई शतकम् । ॥१२॥ स्थूलीभद्र: पाटलीपुत्र पटना के ब्राह्मण जातीय गौतमगोत्रीय शकडाल उस समय नंद राजा के प्रधान मंत्री थे । स्थूलीभद्रने १२ वर्ष कोशा वेश्या के घरं व्यतीत किये थे। पिताजी राज्यकार्य देखते थे. पर किसी कारण से पिता की मृत्यु हो जाने से इन्हें राज्य कार्यभार लेने को प्रोत्साहित किया, पर आपको राज्य के षड्यंत्र से कतई प्रेम न था, अतः आपके लघु बंधु पितृस्थान पर नियुक्त किये और अपने मुनि दीक्षा अंगीकार की। पूर्व परिचिता कोशा के वहां चित्रशाला में चतुर्मास रहे। वेश्या पूर्व विगत बातों की स्मृति दिलाकर अनेक ऐसे हावभाव दिखाने लगी जिससे वे पूर्ववत होकर रई, पर वह महान् आत्मा को उन कामोत्तेजक वैभवों का लेश RI मात्र भी असर नहीं हुआ । प्रत्युतः उसी को प्रबोध देकर जैन धर्मानुयायिनी बनाई। आपके अस्तित्व समय में विश्वविख्यात कौटिल्य अर्थशास्त्र निर्माता चाणक्य ने नवनंद का नाश कर मौर्य साम्राज्य प्रस्थापित कर चंद्रगुप्त का राज्यभिषेक किया । इ० पू० ३११ में स्थूलीभद्र का स्वर्गवास हुआ । आर्य महागिरि, आर्य सुहस्तिः प्रथम का परिचय अत्यल्प ऊपलब्ध हैं। आप जिन कल्प की तुलना करते थे। इ० पूर्व २८१ में आप स्वर्गासीन हुए, आर्य सुहस्तिका अत्यन्त अल्प वृतांत उपलब्ध है, बाल्यावस्था में आप १ जैन श्रमणिका द्वारा पालित रक्षित थे । आपने महाराजा संम्प्रति मौर्य को प्रतिबोध देकर जैन धर्मानुयायी किया, और जैन धर्म के प्रचारार्थ अनेक प्रयत्न किये । भारत से बाहर भी | पचार किया । यूनान में आज भी एक ऐसी जाति है. जो अपने को समनिया श्रमणिया कहती हैं। उनका आचरण बिल्कुल जैन AGAREKAR %3D For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy