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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गणधर सार्द शतकम्। ॐECRECA भ्रमणभगवान महावीर: मानवसंसार का शायद ही कोई ऐसा पुरातत्वज्ञ होगा जिसे परोपकारी भगवान महावीरस्वामी के परिचय देने की आवश्यकता हो । विश्व का कोई दार्शनिक ऐसा न होगा जो भगवान के दिव्य सिद्धान्तों से अनभिज्ञ हो । आपका उपदेश मानव मात्र के लिये था, आप के अमूल्य सिद्धान्त विश्व को मानवता का पाठ पढ़ाते है, हमारा विश्वास है कि यदि श्रमण भगवान महावीर के समस्त उपदेशामृतों का पूर्ण रुपसे प्रचार किया जाय तो, जैन धर्म संसार-विश्व धर्म हो सकता है, क्योंकि इस में वैज्ञानिकता भरी हुई है। भगवान् कथित बातें आज हमको साक्षात देखने को मिलती है। संक्षिप्त में कहेंगे कि-संसार के | ही समस्त वैज्ञानिकों ने ऐसी कोई नूतन खोज नहीं की जो प्रभु महावीर के कथनों में न हो, अर्थात् आज के विज्ञान ने मात्र इतना ही कार्य किया है कि पूर्व लिखित संशोधित बातों को क्रियात्मक रूप दिया। प्रभु महावीर ऐतिहासिक व्यक्ति थे। आपका जन्म ईस्वीसन पूर्व ५९९ चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को क्षत्रियकुंड ग्राम निवासी महाराजा सिद्धार्थ की सुशीला धर्मपत्नी त्रिशलादेवी की रत्नकुक्षी से हुआ था। वह युग भारत के लिये सुवर्ण का था। आपके जन्म से ब्राह्मण समाज द्वारा जो यज्ञादि क्रियाओं में मूक पशु जो सहस्रों की संख्या में मौत के घाट उतारे जाते थे, उन्हे अभयदान मिला, समस्त संसारने अनिर्वचनीय आनंद का अनुभव किया। आपने तीस वर्ष के बाद मार्गशीर्ष कृष्णा दशमी को राजवैभवों का सर्वथा परित्याग कर दीक्षा ली, अब आप निम्रन्थ हुए, तदनंतर आपने अनेकों ऐसे २ महान भीषण उपसर्ग सहे, जिन्हें श्रवणकर वज्र का हृदय भी पानी हुए विना न रहेगा । क्रमशः तपश्चर्या कर १ 45 5 - 4 For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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