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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsun Gyanmandir गणधर सार्द्ध शतकम्। ॥६॥ &ा अल्प शिष्य होंगे जिनके रचित ग्रन्थ उपलब्ध न होते हों। गणधरसाईशतकान्तर्गत प्रकरण । ___उपरोक्त वृत्ति खास कर इसी लिये निर्माण की गई होंगी कि संक्षिप्तरूप में खरतरगच्छीय मुनियों को अपने पूर्वजों का ज्ञान हो क्योंकि सब मुनि इतने विद्वान न होते थे जो वृहद्वृत्ति का अध्ययन कर सके, इसमें आचार्य वर्द्धमानसूरिजी से आचार्य श्रीजिनदत्तसूरिजी तक का विवरण उद्धृत किया है, वह भी अति संक्षिप्त रूप से, इस वृत्ति के संक्षिप्त रूप प्रदायक मुनिश्री चरित्रसिंह थे जो उस समय के उत्तम श्रेणि के ग्रन्थकार थे। आपके निम्न ग्रन्थ उपलब्ध है जो आपकी प्रतिभा के परिचायक हैं। चतुःशरण प्रकीर्णका, सन्धि गा. ६९ (संवत १६३९ जैसलमेर ) सम्यक्त्वविचारस्तवमाला० [१६३३ झर्झरपुर ] कातंत्रविप्रभावचूर्णि [सं. १६३५ धवलकपुर ] मुनि मालिक [१६३६ रिणी में ] रूपकमालावृत्ति, शाश्वत चैत्य स्त० गा. २० खरतरगच्छ गुर्वावलि गा. २० आल्या बहूत्वस्तव. आदि आदि । उपरोक्त प्रकरण हमारी [जिनदत्त सूरि ] ग्रन्थमालासे पूर्वप्रकाशित हो चुका है। | प्रस्तुत वृत्ति इस वृत्ति का उल्लेख अन्यत्र कहीं पर दृष्टिगोचर नहीं होता, अतः यह सर्वप्रथम श्रीजिनदत्तसूरि पुस्तकोद्धार फंडद्वारा साहित्यविलासी भाई बहिनों के करकमलों के समर्पित करने का मुझे जो सौभाग्य प्राप्त हुआ है वह मेरे लिये अतीव आनंद का विषय है। इसके प्रणेता श्रीसागरचंदसूरि-देवतिलकोपाध्याय के शिष्य मुनिश्री पद्ममंदिर हैं, इन्होंने वि. सं. १६७६ पौष शुक्ला ७ C For Private and Personal Use Only
SR No.020335
Book TitleGandhar Sarddhashatakam
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1944
Total Pages195
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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