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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org प्रकीर्णक । ૧ अनुमान १ । दो राशियों का परस्पर में भाग देने से जो हर एक भागहार में भाज्य भाजक रहते हैं उन का भी महसमापवर्तन वही होता है जो उन दो राशियों का महत्तमापवर्तन है । ४२६) ६१२ (१ ४२६ जैसा । ४२६ और ६१२ इन के महत्तमापवर्तन के लिये इन का परस्पर में भाग देने का न्यास | १८६) ४२६ (२ ३७२ ५४) १८६ (३ १६२ २४) ५४ (२ ४८ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ६) २४ (४ २४ इस प्रकार से ४२६ और ६१२ इन का महत्तमापवर्तन ६ है । अब यहां हर एक भागहार में ४२६ और १८६, १८६ और ५४, ५४ और २४ और २४ और ६ ये जो भाज्य भाजक हैं इन का भी महत्तमापवर्तन ६ यही है । अनुमान २ | दो राशियों को जो कोइ तीसरा राशि निःशेष करता हो वह उन दो राशियों के महत्तमापवर्तन को भी निःशेष करेगा । अनुमान ३ । जो दो राशि परस्पर दृढ हैं अर्थात् १ छोड़ किसी अन्य एक हि राशि से निःशेष नहीं होते उन का परस्पर में भाग देने से अन्त का भानक १ होगा । ४४ । जो और के इन दो राशियों का चक गुणनफल ग का वर्त्य अर्थात् ग से निःशेष होने के योग्य हो और क और ग ये दो परस्पर दृढ हो तो ग से अ निःशेष होगा । For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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