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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra क घ, और अ कल = ग, = त + तथद + द) घ गथ Birdie और में घ बड़ा 1 .. π ऋ घ - क 5. श्र यहां स्पष्ट देख पड़ता है कि घ से अ और क ये दोनों भी निःशेष: होते हैं । - कत गथ = फच प्रकीर्णक क = घ + गथ ग + कत अ और क इन को जितने राशि निःशेष करते होंगे उन सभी है 1 www.kobatirth.org क्यों कि जो यों न मानो और कहा कि और क इन को निःशेषः करनेहारों में सभों में बड़ा राशि च है और इस का और के में अलग भाग देने से क्रम से प और फ ये दो लब्ध होते हैं । तो = पच, और क फच होगा: - पच घ + घदथ = (१ + यद) घ । Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घद + त (१+ यद) घ - तफच थ ( प - तफ) च (फ - ( प - तफ) च । और थप + तथफ) च । इस से स्पष्ट प्रकाशित होता है कि च से घन होता है । तोच सब से बड़ा नहीं हो सकता। इस लिये और क इन को निःशेष: करनेहारों में घ सब से बड़ा है. यह सिद्ध हुआ । इस को और क का महत्तमापवर्तन कहते हैं । और इसी लिये इस से भागे हुए और क ये दो राशि फिर १ छोड़ किसी दूसरे एक हि राशि से निःशेष न होंगे अर्थात् वे दृढ होंगे । श्रीयुत भास्कराचार्यजी ने भी लीलावती और बीजगणित के कुछकाध्याय में कहा है कि परस्परं भाजितयेोर्ययार्थः शेषस्तथेोः स्यादपवर्तनं सः । तेनापवर्तेन विभाजित। यौ तौ भाज्यहारी दृढसंज्ञको स्तः ॥ - यह रेखागणित के सातवें अध्याय के दूसरे क्षेत्र में भी क्षेत्र रीति से सिद्ध किया है । For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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