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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir संकलन । . ११ (5) को राशि अपने अंश से बड़ा होता है और अपने सब अंशों के योग के समान होता है। अध्याय २ । इस में मंकलन, व्यवकलन इत्यादि छ परिकर्म और प्रकीर्णक हैं। संकलन । १६ । यहां संकलनीय पदों को अपने २ धन Vण चिह्न के साथ अलग २ लिखने से जो बनता है सो संकलित अर्थात् योग है । इस में यदि कुछ सजातीय पद हों तो उन को मिला के एक हि बंद कर देओ और यदि विजातीय पद हों तो उन को अपने धन श्रेणी चिह्न के साथ अलग २ लिखो सो हि उन का योग यहां सजातीय संकलनीय पदों का संकलन दो प्रकार का है। .. पहिला प्रकार । जब सजातीय संकलनीय पदों के चिह्न सजातीय हैं। २० । रीति । संकलनीय पदों के संख्यात्मक वारस्रोतकों का व्यक्तगणित की रीति से योग करो और उस योग के पीछे सजातीय पद के अक्षर वा अक्षरों को लिख के पर्व में द्योतक चिह्न जो धन घा भूण होगा सो लिखो।. ___ * इस की युक्ति यह है। + अ और + क इन का योग परिभाषा से + + (+ क) यह है । अब चौथो प्रत्यक्ष बात से। + + (+क) = + + क + (+क-क) = + अ + क + 0 = + क । ऐसाहि। - अ, - क इन का योग = - अ + (-क) %3D - -क+ (-क+क) = - -क+0=-अ-क। इस से स्पष्ट है कि पदों को अपने २ धन ऋण चिह्न के साथ अलग २ लिखने से संकलन बनता है। __ + इस की युक्ति यह है । यदि असक रुपया का द्योतक हो और क एक पैसे का योतक हो तो और क इन दोनों का योग दो रुपये भी न होगा दो पैसे भी न होगा किन्तु + क एक रुपया और एक पैसा यही होगा। भास्कराचार्यजी ने भी कहा है कि (योगान्तरं सेषु समानजात्यार्षिभिनजात्याश्च एथक स्थितिः स्यात्) For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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