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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अनेकवर्ण एजथातसमीकरण । (३) अनेक समीकरणों में ना एक हि अव्यक्त होगा उस के बारयो. सकों को समान करने से तीसरी रीति बनती है। अनेकवर्ण एकघातसमीकरण की समक्रिया जिस में दो अव्यक्त हैं। ८७ । प्रथम रीति । प्रत्येक समीकरण से एक हि अव्यक्त की उमिति निकालो फिर उन दो उन्मितिओं को समान करने से एक समीकरण उत्पन्न होगा इस में दूसरा हि अध्यक्त रहेगा* । तब पूर्व समक्रिया से उस का मान तुरंत निकलेगा फिर उत्यापन से पहिले अव्यक्त का भी मान जात होगा । जैसा नीचे दिये हुए उदाहरणों में । (३+४= ३२ स उदा० (१) य औरर का मान क्या है? १५-६५२८ यहां (१) और (२) ये दो विह क्रम से प्रथम और द्वितीय समीक. रण के मोतक मानो तब (८३) वे प्रक्रम से (२) से, ये-८६र ये दो य को उमिति हैं। छेदगम से, १६०-२०१८४+१८१ पक्षान्तरनयन से, १२+२० र १६० -८४ वा, ३र७६ : २ पौर य =३२-8र इस में र के मान का उत्थापन करने से Rom वा, - २१६र - २१६४२-२-१२- ४१८ । . * रस की युक्ति (१८) वे प्रक्रम के (१) मी प्रत्यक्ष बात से स्पष्ट है। For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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