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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra (१०) प्र क) ( www.kobatirth.org अनेकवर्ण एकघातसमीकरण । ग- १ ग) (क-ग) (य + ग) क १ क) (क ग) (य+क) रस में Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir घर - १ +) (य+क) (य+ग) ८६ (१) जिन अनेकवर्ण समीकरणों में जितने समीकरण होते हैं वे प्रथम प्रकार के हैं । ३ श्रनेकवर्ण एकघात समीकरण । | अनेकवर्ण समीकरण तीन प्रकार के होते हैं । , २१५ य - २ और - १ । व्यक्त हों उतने हि दून में अव्यक्तों के मान नियत रहते हैं अर्थात् एकघात समीकरणे में प्रत्येक अव्यक्तों का मान एक हि रहता है, वर्गसमीकरणों में दो इत्यादि । (२) जिन में अव्यक्तों से समीकरण न्यून हैं वे दूसरे प्रकार के हैं । दून में प्रत्येक अव्यक्त के मान अनन्त रहते हैं । For Private and Personal Use Only (३) और जिन में अव्यक्तों से समीकरण अधिक हों वे तीसरे प्रकार के हैं । दन में समीकरण अशुद्ध होते हैं अथवा अशुद्ध न हों तो अधिक समीकरण व्यर्थ होते हैं । अब प्रथम प्रकार के समीकरणों की समक्रिया के लिये निर्दिष्ट अनेक समीकरणों से ऐसा एक हि समीकरण उत्पन्न करना चाहिये कि जिस में एक हि अव्यक्त रहे । यह समीकरण वक्ष्यमाण तीन ऐतियों में चाहा उस से उत्पन हो सकता है । (१) अनेक समीकरणों में जो एक हि अव्यक्त हो उस के उन्मितिश्रों का साम्य करने से प्रथम रीति बनती है। 1 (२) उत्थापन से दूसरी रीति बनती है ।
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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