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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org परिभाषा | ऐसाहि । य + अ = १ - कल + २ग यह दिखलाता है कि य+, र - क और ल + २ग इन तीनों का मोल समान है । (३) जिन दो पदों के बीच में < यह वा > यह चिह्न रहता है उन में जो पद चिह्न के अय की ओर रहता है वह दूसरी ओर के पद न्यून होता है । जैसा । > क, वा, क< अ, यह दिखलाता है कि है । से सेक न्यून (४) ७० यह चिह्न अन्तर को दिखलाता है। जैसा, क. यह और क इन में जो छोटा होगा उस को बड़े में घटा देने से जो शेष बचेगा उस को दिखलाता है । (५) • इस को जिसलिये बोलते हैं । (६) : इस को इसलिये बोलते हैं । (७) इ०, इत्या०, Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ..... ये हर एक चिह्न इत्यादि के व्योतक हैं । १० चह्नों से वा बीजात्मक अक्षरों से जो संख्या वा राशि दिखलाया जाता है उस को पद कहते हैं सो दो प्रकार का । एक केवल और एक संयुक्त | 1 (१) जो पद एक हि संख्या को दिखलाता है वह केवल पद है जैसा । कग, ५२ । (२) जहां दो वा तीन इत्यादि अनेक केवल पद परस्पर संबद्ध हैं। वह संयुक्त पद है | जैसा । अ + क, बा, य' + २ श्रय - क... । संयुक्त पद में जो पहिला पद है सो और जो केवल पद है सो यदि धन हो तो वहां प्रायः धन चिह्न नहीं लिखते । जैसा, यहां वाय । संयुक्त पद में जो केवल पद रहते हैं उन के लिखने का कुछ क्रम नहीं है । जैसा | + ५ क ४ ग + ५क, वा, ५ क www -- ४ ग वा ४ ग, वा, 8 ग + + ५क, बा, - ४ ग + चा था, ५ क + - ४ ग d For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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