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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परिभान । क -य यह दिखलाता है कि अ-य के घनमूल को क से गुण दिया है । . .. सातवे प्रक्रम में नो घातमापकों के लिखने का प्रकार कहा है उस से यह सिद्ध होता है कि घातमापक का छेद मलमापक है । इस हत से घात और मल इन के कर्म समान क्रिया से बनने के लिये भिवघातमापक के द्वारा मूलक्रिया को दिखलाते हैं। ' जैसा । अरे यह अ के एकघात के वर्गमल को अर्थात् अ के वर्गमल को दिखलाता है। इसी भांति अ यह अके घनमन को दिखलाता है । अ यह अ के चतुतमून को दिखलाता है। और अ यह अ के नघातमूलः को दिखलाता है। और अ यह दिखलाता है कि के वर्ग का घनमूल लिया है घा के घनमूल का वर्ग क्रिया है। ऐसाहि । अ + क ' यह वा (अ + क) यह अ + क के वर्गमूल को दिखनाता है । (अ- या यह अ-य इस के घन के चतुतमल है। वा चतुघांतमूल के घन को दिखलाता है। है। इस प्रक्रम में दूसरे कितने एक उपयोगी चिह्नों को लिखते हैं। (१) :::, : यह वा :,-, : यह तीन अवयवों का चिट्ट अनुपात को दिखनाता है । जैमा, अकग:घ, वा, अंकग :घ, यह दिखलाता है कि अका क में भाग देने से जो लब्ध होगा वही.म. का । ___(२) - यह निह समता को धा एकरूपता को दिखलाता है । जैसा, + य = क-ग, यह दिखलाता है कि अमें य को नोड़ देने से जो बनता है सो क में ग को घटा देने से जो बचता है उस के समान है। - - रस को अपसि (७२) हे प्रक्रम के (६) वी युक्ति में देखो। For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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