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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११३ न्यास । २). ३) ५) १५ लघुतमापवर्त्य । १८ १५अ अ ५ अ ३ अ १० अर १० अर - .:. २४३४५xx३.x२ = १८० गर यह अभीष्ट लघतमा. पवर्त्य है। उदा० (२) ३ य+३ घर, ३ य-३ यर, ३ य२-३१और यो-यर इन का लघुतमापवर्त्य क्या है? न्यास । ३) ३ य+३ यर, ३ य-३ य) य+ या, य-- यर, घर- र, य३ - यार, य+र) य + र, य - र, यो- र, य- र, । । । । .: ३४ य x (य+र) x (य-र) = ३ य-३यर, यह उदृिष्ट पदों को लघुतमापवर्त्य है। अथवा इस में हर एक पंक्ति में जो २ पद किसी और पद में निःशेष होता हो उस २ निःशेष करनेहारे पद के नीचे एक रेखा करो और उस को छका हुआ समझो। फिर शेषः पदों में आगे उक्त प्रकार से क्रिया कर के लघुतमापवर्त्य निकाला। वही अभीष्ट लघुतमापवर्त्य होगा। इस से क्रिया में बहुत लाघव होगा । जैसा ऊपर के उदाहरण में। ३) ३ +३ घर, ३ यर-३यर, ३ य-३२२, य- घर, ___य) य+यर, य-यर, यर-२, य-यरर, य+र य-र या-र .. ३४ य ४ (A२-) = ३ - ३.या यह लघुतमापवर्त्य है। For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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