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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ११२ लघुतमापवर्त्य । तीसरे पद को ग का अपवर्त देने से अ, क और ग ये सब परस्पर दृढ पद हो गये । अब इन का गुणनफल अगर है इस को का और ग इन अपवर्तनों से गुण देने से अकग x x = करे गरे यह गुणनफल अक, कॉँग और गरे इन का लघुतमापवर्त्य है । (५३) वे प्रक्रम में पहिला उदाहरण देखो | इस की उपपत्ति । अन्त के सब दृढ पदों का गुणनफल (५३) वे प्रक्रम के अनुमान के अनुसार उन दृढ पदों का लघुतमापवर्त्य है | परंतु अपवर्तन देके दृढ किये हुए पदों का लघुतमापवर्त्य भी अपवर्तित होगा । इस लिये उस लघुतमापवर्त्य को उन अपवर्तनों से गुण देने से गुणनफल अनपवर्तित पदों का अर्थात् उद्दिष्ट पदों का लघुतमापवर्त्य होगा । यो उपपन्न हुआ | अब जहां दो वा अधिक उद्दिष्ट पदों में हर एक पद के दृढ गुण्यगुणकरूप अवयव तुरंत जान सकते है। वहां उन पदों का लघुतमापवर्त्य जानने के लिये लाघत्र का और अत्यन्त सुगम यह नोचे लिखा हुआ प्रकार ऊपर की उपपत्ति के आश्रय से उत्पन्न होता है । उद्दिष्ट पदों को एक पंक्ति में लिखो फिर उस में जिस किसी दृढ पद से अनेक पद अपवर्त्य हो उस भाजकरूप दृठ पद को पंक्ति के भाजकस्थान में लिख के उस से जितने उद्दिष्ट पद निःशेष होंगे उतने पदों की लब्धियों को उन २ पदों के नीचे लिख दे और जो पद निःशेष न होंगे उन को अपने २ नीचे लिख देओ । इस से एक दूसरी पंक्ति उत्पन्न होगी फिर इस का पूर्ववत् एक दृढ पद भाजक कर के तीसरी पंक्ति उत्पन करो । और ऐसा फिर २ तब तक करो जब तक किसी दृढ पद से पंक्ति में अनेक पद निःशेष होने के योग्य न रहें तब सब भाजक और अन्त के पंक्ति में जो पद बचे हों उन सभों का गुणनफल सिद्ध करो। वह गुणनफल उद्दिष्ट पदों का लघुतमापवर्त्य होगा । उदा० (१) १५, १८ अ, और २० इनका लघुतमापवर्त्य क्या है ? For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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