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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org भूमिका इसलिये इस में फल में जो एक २ अक्षर के स्थान में कोर संख्या रखा तो वह फल कभी अशुद्ध नहीं होता अतएव यह सामान्य गणित कहलावे । और इसी लिये इस को बाज अर्थात् तत्त्व वा मूल और अव्यक्त कहते हैं । अब यह गणित पृथ्वीपर पहिले किस देश में उत्पन्न हुआ इस का विचार करते हैं । 1 * मेरे विचार में यह आता है कि यह गणित पहिले हिन्दुस्थान में उत्पन्न हुआ फिर यहां से सर्वत्र फैला है। इस का कारण यह है कि सूर्यसिद्धान्तादिक जो अति प्राचीन ग्रन्थ हैं इन सभों में इस गणित से उपपच हुए प्रकार मिलते हैं। जेसा सूर्यसिद्धान्त में कोयशङ्क का आनयन जो* टिप्पणी में लिखा है इस की उपपत्ति बीजगणित के Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir त्रिज्यावर्धितोऽयज्यावी नाद्वादशाहतात् । पुनर्द्वदिश निघ्राच्च लभ्यते यत् फलं बुधैः ॥ शङ्कुवर्गार्धसंयुक्तविषुत्रद्वर्गभाजितात् । तदेव करणी नाम तां पृथक् स्थापयेदुधः ॥ श्री विषुवच्छायाग्रन्यथा गुणिता तथा । भक्ता फलाख्यं तद्वर्गसंयुक्तकरण पदम् ॥ फलेन हीनसंयुक्तं दक्षिणोत्तरगोलयोः । याम्ययोर्विदिशाः शङ्कुरेवं याम्योत्तरे रवी ॥ परिश्रमति शङ्कास्तु शङ्कुरुत्तरयोस्तु सः ॥ इस का अर्थ । त्रिज्या के वर्ग के आधे में अया का वर्ग घटा के शेष को १२ से गुण के फिर उस को १५ से गुणदेश्रो और इस में शङ्खवर्ग के आधे अर्थात् ७२ से ि जो भाव उस का भाग देश इससे जो भजनफल गणक लोग पायेंगे उस का नाम करणी होवे उस करणो को गणक अलग लिख रखे फिर १२ गुनी पलभा के असे गुण के उस में साहि भाग देश्रो अर्थात् ७२ से सहित को पलभावर्ग उस का भाग देखो जो लब्ध होगा उस का नाम फल होवे । अब इस फल के वर्ग से सहित जो करणी उस का वर्गमूल उस फल से रहित वा सहित करो जब सूर्य दक्षिणा का उत्तर गोल में होवे अर्थात् जो सूर्य दक्षिण गोल में होवे तो करणी के वर्गमूल में फल घटा देश्रो और जो उत्तर गोल में होवे तो फल जोड़ देश्रो साशङ्कु होता है। यह शङ्क जिस स्थान के लिये शङ्क सिद्ध करते हो उस की दक्षिण की और सूर्य भ्रमण करता हो तो श्री और नैर्ऋती दिशाओं में बनता है और जो उत्तर की ओर सूर्य भ्रमण करता हो तो, ईशानी और बायत्री दिशाओं में बनता है इस को उपपत्ति यह है । यहां मानो य = -कोणशङ्क । तब १२: पलभा : यः प १२ For Private and Personal Use Only य शङ्कुलल ।
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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