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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ श्री: ॥ भमिका । गणित तीन प्रकार का है । उस में १। जो एक, दो इत्यादि संख्याओं से बनता है वह एक गणित है। इम में मो गणनाप्रकार एकत्र उपपत्र हो सो प्रायः अन्यत्र उपपव नहीं होता इसलिये यह विशेष गणित कहलावे और इसी लिये इस की व्यक्त गणित अर्थात स्पष्ट गणित संजा है । यह पहिले भारतवर्ष में उत्पन्न हुआ और फिर यहां से सब पृथ्वी में फैल गया क्योंकि यह अत्यन्त प्रसिद्ध है कि यह गणित युरोपीयन लोगों ने प्रारबों से लिया और पारख लोगों ने भारतवर्ष से लिया क्योंकि वे इस को हिसाबे हिन्द कहते हैं। २। जो गणित रेखायों से बनता है यह दूसरा । इस से जो गण. नाप्रकार एकत्र उपपत्र हो यह सर्वत्र उपपत्र होता है परन्तु इससे गणितमात्र का निर्वाह नहीं है। इस गणित की सत्यबाते अतिप्राचीन काल से भारतवर्ष में प्रसिद्ध हैं उस में किसी को संशय नहीं, परन्तु यह मित्रादि देशो में बहुत फैल गया। इस का सविस्तर वृत्तांत महत क्षेत्रमिति यन्य की भूमिका में देख लेओ। इस प्रकार का नाम जयसिंह राजा के जगनाथ नामक पण्डित ने रेखागणित रखा है परन्तु हम ने रस का नाम क्षेत्रमिति रखा है। ३। जो गणित संख्याओं के स्थान में असर रखके उन से बनाते हैं वह तीसरा । इस में एकत्र जो गणितप्रकार उपपव हो उस का व्यभिचार अन्यत्र कहीं नहीं होता क्योंकि नो अतर किसी एक संख्या का द्योतक हो तो वह संख्याओं के ऐसा दूसरे अक्षर में लुप्त नहीं हो जाता For Private and Personal Use Only
SR No.020330
Book TitleBijganit Purvarddh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBapudev Shastri
PublisherMedical Hall Press
Publication Year
Total Pages299
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size11 MB
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