SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 91
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir होयेंगे ॥ और पांचवें आरेमें दशकरोडाकरोड वारहसैकरोड वानवेकरोड बत्तीसलाख निन्नानवे हजार एकसौ इतनी साध्वियां होंगी ॥ और सोलहलाख तीनहजारकरोड तीनसत्तरकरोड चौरासीलाख इतने श्रावक है होंगे और पैंतीसलाखकरोड बानवहेजारकरोड पांचसैवतीसकरोड इतनी श्रावका होंगी ॥ पांचवेंआरेमें संघका प्रमाण कहा ॥ यहां कितनेक आचार्य ऐसा कहते हैं ॥ पांचभरत पांचएरवत क्षेत्रके संघका यह प्रमाण है ॥ कितने आचार्य कहते हैं पांच भरतके संघका यह प्रमाण है ॥ कोई आचार्य कहते हैं एकभरतके 2 संघका प्रमाण है ॥ तत्वज्ञानी गम्य है ॥ और पांचवें आरेके अंतमें दुप्पसहसूरि आचार्य होवेंगे ॥ खर्गसे च्यवके आवेंगे बारह वर्षतक घर में रहेंगे ॥ चार वर्ष सामान्यसाधु पदमें रहेंगे और चारवर्ष आचार्यःपदमें रहके वीस(२०) वर्षका आयुःपालके अनशनकरके सौधर्मदेवलोकमें देव होंगे। कैसे दुप्रसहसूरि दशवैकालिक १ जीतकल्प २ आवश्यक ३ अनुयोगद्वार ४ नन्दी ५ सूत्रोंके धारनेवाले इन्द्रादिकोंने नमस्कार किया जिन्होंको दो दो उपवासकरके | पारना करनेवाले अंतमें तीन उपवासकरके वर्ग जावेंगे ॥ स्वर्गमें एक सागरोपमका आयुभोगवके भरतक्षेत्रमें जन्मपाके दीक्षालेके केवलज्ञानपाके मोक्ष जावेंगे॥ वीस हजारनौसै वर्ष तीन महीनां पांचदिन पांचपहर एक घडी दो पल इकतालीस अक्षर इतने कालपर्यन्त धर्मरहेगा॥और निन्नानवे वर्ष आठ महीना चौवीस दिन दोपहर पांच घडी सत्तावन पल उन्नीस अक्षर इतने कालमें जिनधर्म थोडारहेगा॥ पांचवें आरेके अंतके दिन श्रुत, १ सूरिः, २] For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy