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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीवा० पंचम आरेका स्वरूप ॥४४॥ GEOGACASSACRECOR उद्धार करावेगा यहां कलंकीके अधिकारमें शत्रुजयमहात्म्य त्रिषष्टिशलाका चरित्रवगैरह, शास्त्रों में संवत् विपई कितनेक विकल्प हैं सो बहुश्रुत जाने ॥ महानिशीथसूत्रमें श्रीप्रभसूरियुगप्रधानके वक्तसें कलंकी 8 राजा होगा ऐसा कहा है इस वचनसे भगवान्के निर्वाणसे दशहजार पांचसै त्रानवे (१०५९३) वर्षमें आठवें ६ उदयमें संभव है ॥ ग्रंथान्तरमें प्रातिपदाचार्यः लिखा है ॥ इति ॥ अब पांचवें आरेमें चतुर्विधसंघ साधुः, साध्वी श्रावकः श्राविकाकी संख्या कहे हैं ॥ ग्यारह लाख सोलह हजार (१११६०००) इतना राजा पांचवे आरेमें 5 जिनमतके भक्त होवेंगे ॥ एक करोड जिनशासनके प्रभावक मत्री होवेंगे ॥ और पांचवे आरेमें श्रीसुधर्माखामी प्रमुख दो हजार चार (२००४) युग प्रधानपदके धारक महोपकारी आचार्यहोगे। उन्होमें सुधर्मा खामी जम्बू खामी उसी भवमें मोक्ष जावेंगे और (२००२) आचार्य एकावतारी होवेंगे ॥ और युगप्रधानसदृश आचार्य प्राणियोंके मोहअन्धकार दूरकरने में सूर्यसदृश ग्यारह लाख ग्यारह हजार सोलह (११११०१६) औरभी आचार्यः चारित्रके पालनेवाले होवेंगे ॥ तेतीसलाख ४ हजार चारसे उन्नीस (३३०४४१९) इतने मध्यमगुण है धारि आचार्याः होंगे और पांचवे आरेमें पचपनकरोड पचपनलाख पचपनहजार पांचसै पचीस (५५५५५५५२५)1 इतने अधमाचार्यः होंगे ॥ पचपनलाखकरोड पचपनहजारकरोड चवालीसकरोड इतने उपाध्यायवाचना-5 चायःहोंगे और सत्तरहलाखकरोड और नवहजारकरोड इकसौइक्कीसकरोड एकलाख साठहजार इतने साधु CAGAR ॥४४ ॥ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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