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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir SAMAKASCARSAMACHAR बहुतसा धनदेकर और सबको अनृणीकरके अपने नामका संवत्सर प्रवर्तावेगा पाटलिपुरका कलंकीपुर ऐसा दूसरा नाम करेगा दत्त नामको पहले पुत्रकी राजग्रह नगरमें राजधानी होगी ॥ उसनगरका दत्त पुरनाम होगा ॥ विजय कुंवरकी अणहलपत्तनमें राजधानीहोगी उसका दूसरानाम विजयपुरहोगा ॥ मुंजकी उजैनीमें राजधानी-18 होगी अपराजितकी और देशमें राजधानी होगी। कलंकीके राज्यमें म्लेच्छ और क्षत्रियोंके रुधिरसे पृथ्वी स्नान करेगी कलंकी राजाके ९९ लाख सोनेका भंडारहोगा ॥ चौदहहजार (१४०००) हाथी होगा ॥ सतासी लाख १४ हजार पांचसै घोड़ा (८७१४५००) ५ करोड (५०००००००) प्यादा दासादिककी तों बहुतसंख्या होगी॥ नभखेलनामका त्रिशूल पाषाणमई घोड़ा चढ़नेके वास्ते होगा ॥ कलंकी कितने वक्त बाद दुष्टाध्यवसायवाला अत्यन्त कसाई होगा ॥ जब कलंकी राज्यकरेगा तब मथुरामें कृष्णवलभद्रका मंदिर गिरेगा ॥ बहुतउपद्रव, दुर्भिक्ष, रोगोंसे मनुष्य पीडा पावेगा पांच स्तूभीमें बहुत धन है ऐसा लोगोंके मुखसे सुनकर आनंद राजाकी बनाई भई सोने मई पांच स्तूभिका कलंकीराजा खुदावेगा सब धन निकालेगा उसमें गायके रूपवाली लवणादेवीकी मूर्तिः पाषाणमई प्रगट होगी उसमूर्तिकोः राजा वगैरहः सबलोग इकट्ठे होके नगरकेचौहट्टेमें स्थायेंगे॥ कोई अवसर साधु गोचरीकेवास्ते बजारमें जावेंगे तब साधुओंको देखके देवताके प्रभावसे वह मूर्तिःसींगोंसे मारनेको उद्यमवान होवेगी तब गीतार्थसाधु इकटेहोके विचारकरेंगे। यहां जलका उपद्रव बहुत होगा। ऐसा जानके सुविहित क्रियाके ENRSCIENCERCRABAR चा. व्या.८ For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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