SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 81
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir मातापिताधनवानको कन्यादेके धनलेके अपनानिर्वाह करेंगे यह सुनके आगेचले ॥ देखते हैं तीन सरोवरपंक्तिसेहैं उन्होंमें पहले सरोवरकाजल उछलके तीसरे सरोवरमें गिरताहुआ देखा ॥ ब्राह्मणसे पूछा । ब्राह्मण बोला महाराज आगामिकालमें जैसे पहलेसरोवरका जल दूसरेको छोड़कर तीसरे पड़ता है वैसा लोगअपने सम्बिधियोंको छोड़कर दूसरे लोगोंसे प्रीती करेंगे ॥ राजा आगे चले देखते हैं जलसे भीजीभई वालुकाका लोगरस्सा बनाते हैं परन्तु नहींबनता है टूट जाता है । यह खरूपनालणसे पूछा ॥ ब्राह्मण बोला हे राजन् कृषीकार लोग बहुतकष्टसे कलि-13|| युगी धन उपार्जनकरेंगे। वहधन चोर अग्निःराजा वगैरह केभयसे लोगोके अन्यत्रजानेसेभी चला जायगा ॥ राजा |आगे चले कुएकेकोठेसे पानी नालीमें होकर कुएमें गिरताहुआ देखा आश्चर्यपाके राजाने पूछा ब्राह्मण बोला है। महाराज कृषी व्यापारादिक महाक्लेशसे लोग धनकमावेगा सो राजा ले लेगा ॥ सतयुगमें राजा अपना धन देकर प्रजाको पुत्र जैसा पालताथा कलियुगमें राजा प्रजाके पाससे धन लेगा यह विपरीतहोगा राजा आगेचले वनमें एक बडापेका वृक्षदेखा उसके पास एक कांटोंवाला वृक्ष है उसकोबहुत लोग सुगंधचंदन वगैरहःसे पूजते हैं। और सुगंधपुष्प सहित शाखा प्रशाखासे शोभमान चंपेके वृक्षको कोई नहीं पूजता है यह आश्चर्यदेखके ब्राह्म-2 णसे पूछा ॥ ब्राह्मण बोला हे नरेन्द्र लोग कलियुगमें गुणवंत उत्तम आचारवाले पुरवोंको छोड़कर पापीदुर्जननींच 5 लोंगोंकी पूजा करेंगे ॥ ऐसा सुनकर राजा आगेचले एक बड़ीशिलावालाग्रसे बंधीभई आकाशमें लटकतीभई देखी SRKESTRAGRA For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy