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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir गच्छ भेदहोगा ॥ कईकअहंकारी होंगे कईक धर्मक्रियामें शिथिलचैत्यवासीहोवेंगे ॥ सुविहित अनुष्ठान करनेवाले 18 साधु थोड़े रहेंगे गच्छवासी साधु परस्पर क्लेश करेंगे ॥ और इसअवसरपणीमें दश (१०) अच्छेराभया सो|8| कहते है श्रीमहावीरखामीके समवसरणमें गोशालेने उपसर्ग किया १ गर्भापहार २ स्त्रीतीर्थकर (३) भगवान् महावीरखामीकी प्रथम देशना खालीगई ४ श्रीकृष्णवासुदेवअमरकंकागया ५ चंद्रसूर्यमूलविमानमें बैठके आये ६ हरिवंशकुलकी उत्पत्तिभई ७ चमरेन्द्रका उत्पातः ८ एकसमयमें उत्कृष्टिः अवगाहनावाला १०८ मोक्ष गया ॥९ असं६ यतिकी पूजा १० ये दश (१०) वस्तुअनंतकालजानेसे होवेहै । इसलिये दुःषमकालमें दशमआश्चर्यकी प्रवृत्तिः जादाहोगी ॥ और बहुत लोग क्रोधी, मानी, मायी लोभी, कामी होगा ॥ मर्यादाछोड़ेगा ॥ धर्मबुद्धिका नाश होगा॥ लोकवक और मूर्ख होवेंगे जैसे जैसे काल हीनआवेगा वैसा वैसा लोगोंकीधर्मसे बुद्धी हीन होवेगी । ६ लोग परोपकार और धर्मरहित होंगे ॥ बड़ेनगर ग्रामसदृशहोवेंगे ग्रामश्मसानः सदृश भयंकर होवेगा॥ राजा र है प्रजापालने में यमराजाके सरीखा होवेगा ॥ और हे गौतम धनवान् व्यापारी उत्तम कुलके प्रायः निर्धन होवेंगे ॥ नीचकुलके व्यापारी प्रायः धनवान् होवेंगे ॥ और देवतादर्शन नहींदेवेंगे मनुष्योंको जातिःस्मरणज्ञानादि प्रायः नहीं होवेंगे ॥ मनुष्य लजा मर्यादारहित होवेंगे ॥ पृथ्वीपरदुष्ट जीव बहुत होवेंगे ॥ और लोग परस्परविघ्न देखके ४ संतोषपावेंगे ॥ लोगोंका पापकरनेमें चार जैसा हाथ होगा और धर्मकरनेमें प्रमादी होवेंगे ॥ अपने कार्यकेलिये %ANSARASA%ACTS For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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