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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir पंचम 15 आरेका स्वरूप दीवा० उन्नति करेगा उसके सत्वसेसिद्ध अग्निवेतालादि अनेक देव सहायभूतहोंगे सोनेका पोरसा वगेरेहःसिद्धहोगा ॥ व्याख्या०/६ धैर्यादिगुणसहितविक्रमादित्यकी ठिकानेठिकाने देव और मनुष्यप्रशंसाकरेंगे और विक्रमादित्यराजा सब लोगोंको दानसन्मानादिक करके अनृणीकरेगा ॥ और अपने नामका संवत्सरप्रवर्तावेगा॥ महावलवान् , प्रजापालकः, परदुःख३८॥ निवारकः परस्त्रीमहोदर ऐसा विक्रमादित्यराजा होगा ॥ बाद मेरे निर्वाणसे पांचसेचौरासी (५८४) वर्ष जानेसे वज्रखामी अन्तिमदश (१०) पूर्वधारी होगा ॥ दशमा पूर्वआधाविच्छेदहोगा ॥ निर्वाणसे ६०९ वर्ष जानेसे 8 हैरहवीरपुरनगरमें दिगम्बरमत उत्पन्नहोगा॥ बाद छैसे सोलह ६१६ वर्ष जानेसे पुष्पमित्रआचार्यके साथ नवमा पूर्व विच्छेदहोगा ॥ छैसै वीस (६२०) वर्ष जानेसे आचार्यादिक प्रामादिकमें रहेगा ॥ विक्रमादित्यसे एकसे पैतीस (१३५) वर्ष जानेसे साखीराजा ॥ शालिवाहनहोगा ॥ विक्रमसे पांचसै पचासी (५८५) वर्ष जानेसे अनेकग्रंथकर्ता, महाप्रभावक हरिभद्रसूरि होगा ॥ मेरे निर्वाणसे ९१३ नौसै तेरहवें वर्ष में कालिकाचार्य भादवासुदीपंचमीसे चतुर्थीको मेरीआज्ञासे पर्युषणापर्वकरेगा ॥ और जिसको इन्द्र आके वन्दना करेगा श्रीसीमन्धरःखामी प्रशंसाकरेगा ॥ मेरेनिर्वाणसे बारहसैसित्तर (१२७०) वर्ष जानेसे वप्पभट्टसूरि होगा ॥ सर्वविद्याविशारद उन्होंके उपदेशसे गोपपर्वतपर आमराजा जिनालयकरावेगा ॥ साढ़ेतीनकरोड़खर्णमुद्राकी प्रतिमा स्थापेगा ॥ मेरेनिर्वामाणसे तेरहसैवर्ष ( १३००) वर्ष जानेसे बहुत मतभेदहोगा। बहुत मोहके कारणसे विषमकालके प्रभावसे अनेक SAKARA ॥३८॥ MATL For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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