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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir रहने बहुत उपसर्ग किया तथापि प्रभु ध्यानसे नहींचले ॥ मेरुके जैसे निष्कम्प रहे॥ श्रीवीरप्रभुके चौमासी, छमासी, दोमासी वगैरह तपकर्तेभयेको पक्ष अधिक साढे १२ बारह वर्ष गये ॥ उससमयमें जम्भिका ग्रामके पास, ऋजुवालुका नदीके किनारे श्यामाक कुटुम्बीके खेतके पासमें सालवृक्षके नीचे गोदोहासन रहेहुये दो उपवाससहित वैशाखशुदि दशमीके दिन पिछले प्रहरमें शुक्लध्यानध्यातेभये ऐसे श्रीमहावीरस्वामीको ४ घातीकर्मका |क्षय होनेसे केवलज्ञान केवलदर्शन उत्पन्न हुआ ॥ वाद ग्यारसके दिन पावापुरी नगरीके बाहर महशेनवनमें चार दनिकायके देव इकट्ठे होके समवसरनकिया ॥ इन्द्रभूत्वादिग्यारहगणधर स्थापे ॥ तीर्थप्रवर्तमान हुआ ॥ भगवान् महावीरस्वामीके चौदह हजारसाधूभये ॥ चन्दनवालाप्रमुख छत्तीस हजार साधवियां भई शंखशतकादि एक लाख (१०००००) ५९ हजार श्रावक भये सुलसारेवतीप्रमुख तीन लाख ( ३०००००) १८ हजार श्राविका भई ॥ अव प्रभुके चौमासोंकी संख्या कहते हैं दीक्षाके अनन्तर पहलीचौमासी अस्तिग्राम शूलपाणीयक्षके है मंदिरमें किया ॥ ३ तिन चौमासी चंपानगरीमें करी ॥ विशालानगरी और वाणीयग्राम नगरमें बारह (१२) चौमासी करी ॥ राजग्रह नगरमें नालन्दक पाडेमें चौदह (१४) चौमासी रहे । मिथिलानगरीमे छै (६) ६ चौमासी भगवान् करी ॥ भद्रिकानगरीमें दो (२) चौमासी आलम्बिकानगरीमें एक (१) चौमासी अनार्य देशमें एक (१) चौमासी सावत्थीनगरीमें एक (१) चौमासी पावापुरीनगरीमें हस्तिपाल राजाकी सभामें AUCAREERAR HOCOCCCCAKCANCIENCIENCACK For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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