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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीपमालि- वर्धमानकुमार नाम किया और देवोंने अनंत सत्वधर्मादिगुणदेखके महावीर ऐसा नाम दिया ॥ वाद बड़ेभये,ITI आर्यसहका व्या०। वाद भोग समर्थ जानके मातापिताने बहुत हर्षके साथ यशोमती नामकी राजकन्या परणाई ॥ प्रभुका सुपार्थ | |स्तिसूरि नामका काका नंदीवर्धन नामका बड़ा भाई सुदर्शना नामकी बहन और यशोमती नामकी स्त्री और प्रियदर्श-16 संप्रतिरा॥३२॥ ना नामकी पुत्री होती भई ॥ श्रीमहावीरखामी २८ वर्ष घरमें रहे ॥ भगवान् पहले गर्भहीमें अभिग्रह किया था|जाको क० मातापिता जीते भये दीक्षा नहीं लेऊंगा ॥ मातापिता देवलोक जानेसे अभिग्रह पूर्ण भया जानके प्रभु दीक्षा-15 लेनेको उद्यमवान् हुये ॥ तब नंदिवर्धन राजाके आग्रहसे और भी २ वर्ष घरमें रहे। वहां संवत्सरी दान दिया। वाद लोकान्तिक देव आके जानते भी भगवान्को दीक्षाकाअवसरजनाया ॥ अहो खामी धर्मतीर्थ प्रवर्तायो । ऐसा देवोंका वचन सुनके प्रभु २ उपवास करके चंद्रप्रभानामकी पालकीमें बैठके देवमनुष्योंके परिवारसहित क्षत्रियकुंडनगरसे निकलके ज्ञातवनसण्ड उद्यानमें आके पालकीसे उतरके मिगसरवदी १० के पिछले प्रहरमें 8 एकाकी एक देवदुष्य वस्त्रसहित दीक्षा लिया। उस समय चौथा मनपर्यवज्ञान उत्पन्नहुआ बाद दीक्षालेके प्रभु अन्यत्र विहार करगये ॥ दीक्षाके दिनसे दूसरे दिन कोल्लाक नाम ग्राममें बहुलब्राह्मणके घरमें परमान्नसे | ॥३२॥ दपारणा किया ॥ वहां पांच दिव्य प्रगट भये ॥ साढा बारहकरोड सोनय्योंका वर्षाद देवोनें किया ॥ अनंतर क्रमसे 8 विहारकरतेभये ॥ वीरप्रभुको ग्वालिया, सूलपाणियक्ष चण्डकोशिकसर्प संगमदेव कटपूतना, व्यंतरी वगै ANGACARROCCA For Private and Personal Use Only
SR No.020325
Book TitleDwadash Parv Vyakhtyana Bhashantaram
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJinduttsuri Gyanbhandar
PublisherJinduttsuri Gyanbhandar
Publication Year1926
Total Pages180
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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